नज़ूल की भूमि पर संचालित हो रहा मुस्लिम मुसाफिरखाना
धार्मिक भू माफिया ने बना रखा है अपनी निजी संपत्ति
हम भारती न्यूज से उत्तर प्रदेश चीफ व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की ख़ास ख़बर
गोरखपुर धर्म की आड़ में काली कमाई की दास्तान जो पिछले 17 सालों से जारी है। धार्मिक भू माफिया के मजबूत शिकंजे में जकड़ी यह सम्पत्ति गोरखपुर पुलिस लाइन के सामने स्थित मुस्लिम मुसाफिरखाने की है जिसमें खुद यह मुसाफिरखाना भी शामिल है। इस मुसाफिरखाने के बारे में भले ही शहर की मुस्लिम अवाम ये जानती हो कि ये मुस्लिम मुसाफिरों के ठहरने के लिए बनाया गया है और कोई भी मुस्लिम मुसाफिर यहां किफायती और वाजिब कीमत पर ठहर सकता है। लेकिन ऐसा नही है यहां के कमरे सालों साल उनके लिए बुक होंते हैं जो तगड़ी रकम अदा करते हैं। इसके अलावा तमाम अन्य लोगों ने भी मुसाफिरखाने के ऊपर छत को कब्जे में कर रखा है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के तहत कब्रिस्तान, मस्जिद और मुसाफिरखाना उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अंतर्गत दर्ज था । राजस्व अभिलेखों की बात करें तो मस्जिद और कब्रिस्तान आराज़ी नम्बर 52 और मुस्लिम मुसाफिरखाना आराज़ी नम्बर 54 पर स्थित है।
32 कब्जों को ध्वस्त करने के बाद जिला प्रशासन की खामोशी पर उठ रहे सवाल
नगर मजिस्ट्रेट के न्यायलय में पीपी एक्ट के मुकदमा 63/2019 चला जिसमें बेदखली का आदेश होने के बाद 32 अवैध कब्जों को तो ध्वस्त कर दिया गया लेकिन उसके बाद प्रशसनिक गति सुस्त हो गई। आपको बता दें कि 1976 में 36 डिसमिल यानी 15696 वर्ग फिट भूमि का पट्टा हुआ था जिसकी मियाद 9 मार्च 2007 में समाप्त हो गई थी और भूमि का स्वामित्त सरकार बहादुर के खाते में चला गया ।
लाखों रुपये महीने की होती है आमदनी
वर्तमान समय में इस मुस्लिम मुसाफिरखाने में लगभग 50 कमरे और 3 डारमेट्री हाल के अलावा दर्जन भर दुकानें हैं। इससे लाखो रुपये की आमदनी मुसाफिरखाने को होती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले 17 सालों से बिना किसी संस्था के बिना किसी रजिस्ट्रेशन के बिना कोई टैक्स जमा किये यह मुसाफिरखाना चल रहा है और इसके आसपास की दुकानों से किराया वसूला जा रहा है।
1987 में कुछ लोगों ने एक साजिश रच कर मुसाफिरखाने की आराज़ी वक्फ से मुक्त करा लिया और उसको 30 साल की लीज पर ले लिया।
इसके बाद से ही यह मुसाफिरखाना विवादों में आ गया लेकिन शहर की जनता इस खेल से बेखबर थी।
नियम कानून ताक पर रख कर चलाया जा रहा मुसाफिरखाना
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मुसाफिरखाने की कोई सोसायटी वजूद में नही है और न ही वक्फ में यह मुसफिरखाना दर्ज है। इसके अलावा सराय एक्ट के तहत इसका कोई रजिस्ट्रेशन ही है।
साथ ही जीएसटी और सरकार के अन्य तमान टैक्स के बारे में भी कोई जानकारी नही है। जानकारों का कहना है कि नगर निगम का भी टैक्स बकाया है। कुल मिलाकर नियम कानून ताक पर रख कर ये मुसाफिरखाना चलाया जा रहा है।
धार्मिक भू माफिया के कब्जे में है मुस्लिम मुसाफिरखाना
1987 में राजनैतिक प्रभाव के इस्तेमाल करते हुए इस मुसाफिरखाने को वक़्फ़ से बाहर की आराज़ी को 30 वर्ष की लीज पर ले लिया गया जिसकी मियाद 2007 में खत्म हो गई।
वतर्मान समय में मोहम्मद अब्दुल्लाह नाम का व्यक्ति खुद को इस मुसाफिरखाने का मालिक कहता है और यहां उन्हीं का हुक्म चलता है। आपको बता दें कि मोहम्मद अब्दुल्लाह को अगर धार्मिक भूमाफिया कहा जाए तो गलत नही होगा।
शहर की जामा मस्जिद, अंजुमन इस्लामिया समेत दर्जनों वक्फ के।प्रमुख के पद पर इनका कब्ज़ा है। मुस्लिम समाज की भलाई के लिए वक्फ की गई सैकड़ो एकड़ भूमि के मालिक बने हुए है।
जल्द ही कार्यवाही करने तैयारी में है जिला प्रशासन
जिले में नुज़ूल भूमि के प्रभारी एडीएम (वित्त एवं राजस्व) विनीत कुमार सिंह का कहना है कि मामला संज्ञान में है जल्द ही कानूनी कार्यवाही करते हुए सरकारी भूमि को कब्ज़ा मुक्त कराया जाएगा।