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43 साल से अमर मणि त्रिपाठी कर रहे हैं जनता के दिलों पर राज,पर विवादों से घिरा रहा उनका पूरा जीवन अमर मणि त्रिपाठी के लिए आज भी धड़कता है जनता का दिल

 43 साल से अमर मणि त्रिपाठी कर रहे हैं जनता के दिलों पर राज,पर विवादों से घिरा रहा उनका पूरा जीवन


अमर मणि त्रिपाठी के लिए आज भी धड़कता है जनता का दिल




नौतनवां विधान सभा की जनता उन्हें अपराधी मानने को कत्तई तैयार नहीं?


हम भारती न्यूज से उत्तर प्रदेश चीफ व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की ख़ास ख़बर


महराजगंज 14 फरवरी 1956 में जन्में अमर मणि त्रिपाठी का पूरा जीवन विवादों से घिरा रहा। आज भी स्थित यही है कि विवाद उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है। जहां एक तरफ कवियत्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में उन्हें आजीवन कारावास की सजा से बीते 24 अगस्त 2023 को निजात मिली वहीं जेल से बाहर निकलते ही बस्ती के एक व्यापारी पुत्र के अपहरण का मुकाबला शुरू हो गया उसके चलते वह अभी फरार बताए जा रहे हैं। यह मामला अभी चल ही रहा था तभी बीते 10 मार्च रविवार को कवियत्री मधुमिता शुक्ला के लखीमपुर खीरी स्थित उसकी वहन निधि शुक्ला के घर के बाहर गोलियां चली जिसमें भी निधि शुक्ला ने सीधे तौर पर अमर मणि त्रिपाठी पर आरोपी बनाया है।निधि ने पुलिस को तहरीर दिया है कि अमर मणि त्रिपाठी उसकी हत्या कराना चाहते हैं। उसने लिखा है की उसे फोन के माध्यम से बार-बार जान से मारने की धमकी भी मिलती रहती है। फिलहाल पुलिस इस मामले की जांच में जुटी हुई है।


बताते चलें कि पूर्वांचल के बाहुबली नेता तथा नौतनवां विधान सभा क्षेत्र के चार बार के विधायक एवं पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी का पीछा नहीं छूट रहा है। राजनीति के माहिर खिलाड़ी पूर्वांचल के इस बाहुबली नेता के बारे कोई कुछ भी कहे पर नौतनवां विधान सभा क्षेत्र की जनता उन्हें अपने दिल की धड़कन समझती है। पिछले बीस साल जेल में रहने के बाद भी यहां की जनता से फोन के माध्यम से संवाद बना रहा और वह आज भी जनता के दिलों पर राज करते हैं।


बता दें कि साल 1981 में पहली बार अमर मणि त्रिपाठी ने पहले 190 लक्ष्मीपुर विधान सभा क्षेत्र से राजनीति की शुरुआत की। उन्होंने साल 1981 में चुनाव लड़ा और पूर्वांचल के एक और बाहुबली नेता वीरेंद्र प्रताप शाही से चुनाव हार गए। चुनाव हारने के बाद भी वह जनता के बीच अपनी उपस्थिति निरंतर दर्ज कराते रहे। साल 1984 आया तो इसी बीच नौतनवां के ट्रांस्पोर्टर सरदार अजीत सिंह की हत्या हो गई। इसको लेकर जनता ने पूर्व मंत्री पंडित मंत्री हरिशंकर तिवारी और उनके सहयोगियों के खिलाफ पूरा बवाल काटा।


बताया जाता है कि वीरेंद्र प्रताप शाही के नेतृत्व में यहां की जनता ने कई महीने तक धरना-प्रदर्शन भी किया था। यहां तक कि यह मामला उस समय राष्ट्रपति से लेकर दिल्ली दरबार में भी पहुंचाया गया। इसी बीच चुनाव आया तो वीरेंद्र प्रताप शाही दूसरी बार चुनाव लड़े और अपने चिर प्रतिद्वंद्वी अमर मणि त्रिपाठी को हराकर विधान सभा पहुंचने में कामयाब रहे। लेकिन इन दोनों चुनावों में हार-जीत का अंतर मामूली रहा। दूसरी बार हार के बाद भी क्षेत्र में बने रहे। साल 1989 के चुनाव में अमर मणि त्रिपाठी चुनाव जीत कर पहली बार विधान सभा में पहुंचे थे। विधायक बनने के बाद वे जनता से सीधे जुड़े रहे। साल 1991का चुनाव आया तो उनके एक और चिर प्रतिद्वंद्वी कुंवर अखिलेश ने अमर मणि त्रिपाठी को हराकर पहली बार विधान सभा पहुंचने में कामयाबी हासिल की।


पुनः 1993 में चुनाव हुआ और एक बार फिर अखिलेश ने अमर मणि को हरा दिया। लगातार दो बार हार के बाद भी अमर मणि क्षेत्र में बने रहे। अखिलेश 1991 से 1993 और 1993 से 1996 तक दो बार विधायक रहे। दो बार हार के बाद भी अमर मणि त्रिपाठी ने हिम्मत नहीं हारी और उनको जनता का ऐसा प्यार मिला कि वह लगातार तीन बार 1996,2002 और 2007 में जीत का परचम लहराया। अमर मणि साल 2012 तक नौतनवां विधान सभा क्षेत्र के चार बार विधायक और मंत्री भी रहे।


हालांकि साल 2007 का चुनाव वह जेल में रह कर लड़े थे और विजयी रहे। हालांकि 2003 में कवियत्री मधुमिता शुक्ला हत्या कांड में सीबीआई ने उन्हें और उनकी पत्नी सहित कई और लोगों को आरोपी बनाया था। तब भी जनता कत्तई मानने को तैयार नहीं थी कि यह घटना उन्होंने की है। उस समय जनता यही कहती थी कि उनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता से घबराकर विरोधी नेताओं के इसारे पर उन्हें एक राजनीतिक साजिश के तहत‌ फंसाया गया है। इस दौरान अमर मणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को आजीवन कारावास की सजा हो गयी और वह जेल चले गए। साल 2012 का चुनाव आया और अमर मणि त्रिपाठी ने अपने इकलौते पुत्र अमन मणि त्रिपाठी को अब के 316 नौतनवां विधान सभा क्षेत्र में उतार दिया लेकिन कांग्रेस के कुंवर कौशल उर्फ मुन्ना सिंह से उन्…

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