Type Here to Get Search Results !

https://www.facebook.com/humbharti.newslive

सशस्त्र बल सेवानिवृत्त सैनिक दिवस (वेटरन्स डे)

 सशस्त्र बल सेवानिवृत्त सैनिक दिवस (वेटरन्स डे)



हमारा देश 14 जनवरी को  9वां सशस्त्र बल सेवानिवृत्त सैनिक दिवस मना रहा है। हमारे देश की सेना विश्व की दूसरी और फायर पॉवर के हिसाब से चौथी सबसे बड़ी सेना है, जिसमें लगभग 4 लाख सशस्त्र सैनिक और 12  लाख रिज़र्व सैनिक हैं ।   इनमें से प्रतिवर्ष लगभग 60,000 सैनिक सेवानिवृत्त होते हैं या सक्रिय सेवा से मुक्त हो जाते हैं, जिनमें से अधिकांश की उम्र 40 के आसपास होती है । यह सैनिक अपनी सेवा के दौरान देश के लिए निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रहते हैं और यही समर्पण इन्हें समाज में एक उच्चकोटि के नागरिक के रूप में दर्शाता है । सैनिकों के राष्ट्र के प्रति उनके बलिदान के सम्मान और उनके परिजनों के प्रति एकजुटता के प्रतीक के रूप में तथा इसी दिन पहले कमांडर-इन-चीफ फील्‍ड मार्शल के. एम. करियप्‍पा, ओ. बी. ई. अपनी सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे, उनके सेना में दिए गए अतुलनीय योगदान की याद में सेवानिवृत्त सैनिक दिवस (वेटरन्स डे) मनाया जाता है। 


      फील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा का जन्म 28 जनवरी 1900 को मर्कारा राज्य में हुआ था, जिसे अब कर्नाटक कहा जाता है। उनके पिता श्री मडप्पा , कोडंडेरा माडिकेरी में एक राजस्व अधिकारी थे। फील्ड मार्शल करियप्पा चार भाइयों  और दो बहनों के परिवार में दूसरी संतान थे। 1917 में मडिकेरी के सेंट्रल हाई स्कूल में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेसीडेंसी कॉलेज, चेन्नई में दाखिला लिया।  कॉलेज में  उन्हें पता चला कि भारतीयों को सेना में भर्ती किया जा रहा है और उन्हें भारत में प्रशिक्षित किया जाना है। वह एक सैनिक के रूप में सेवा करना चाहते थे। उन्होंने  सेना में भर्ती होने के लिए आवेदन किया।  70 आवेदकों में से  42 लोगों को चुना गया, उनमें से करियप्पा एक थे, जिन्हें अंततः डेली कैडेट कॉलेज, इंदौर में प्रवेश दिया गया। उन्होंने अपने प्रशिक्षण के सभी पहलुओं में अच्छा स्कोर किया और स्नातक की उपाधि प्राप्त की।  वह पढ़ाई में बहुत अच्छे थे, किन्तु गणित, चित्रकला उनके प्रिय विषय थे। एक होनहार छात्र के साथ साथ वे हॉकी, टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी रहे।


    उन्होंने 1919 में भारतीय कैडेटों के पहले समूह के साथ किंग्स कमीशन प्राप्त किया, और 1933 में, स्टाफ कॉलेज, क्वेटा में शामिल होने वाले पहले भारतीय अधिकारी थे। 1942 में लेफ्टिनेंट कर्नल के. एम. करियप्पा ने 7 वीं राजपूत मशीन गन बटालियन (अब 17 राजपूत) को खड़ा किया। 1946 में एक ब्रिगेडियर के रूप में वह इंपीरियल डिफेंस कॉलेज, यू. के. में शामिल हो गए। बल पुनर्गठन समिति की सेना उप समिति के सदस्य के रूप में सेवा करने के लिए यू. के. से वापस बुलाए गए, विभाजन के दौरान उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सेना के विभाजन के लिए एक सौहार्दपूर्ण समझौता किया।  14  जनवरी 1953 में सेना से रिटायर होने के बाद भारत सरकार ने 15  जनवरी 1986  को उन्हें फील्ड मार्शल का सर्वोच्च पद दिया, जो पांच-सितारा जनरल ऑफिसर रैंक 15 मई 1993 को 94 वर्ष की आयु में बैंगलोर में उनका निधन हो गया।


    सेवानिवृत्त सैनिक दिवस को मनाए जाने के पीछे मूल भावना यह है कि सेना के संघर्षपूर्ण जीवन के पश्चात सैनिक समाज में स्वयं को अकेला न महसूस करें। उनको उनका सम्मान मिलता रहे। सेवानिवृत्त सैनिकों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने कई कल्याणकारी कदम उठाए हैं लेकिन सरकारी कार्यालयों में बैठे लोगों की लटकाने की कार्य संस्कृति के कारण सेवानिवृत्त सैनिक अपने को ठगा हुआ महसूस करते है।  सेवानिवृत्त सैनिकों का हितैषी दिखाने के लिए देश में सरकारी मंचो से बड़ी बड़ी  घोषणाएं की जाती हैं, बड़े बड़े पम्पलेट छपवाकर बांटे जाते हैं, उस समय ऐसा लगता है कि यह ही सेवानिवृत्त सैनिकों के सबसे बड़े हितैषी हैं।  लेकिन आयोजन ख़त्म होते ही यह घोषणाएं फाइलों में केवल शोभा की वस्तु रह जाती हैं और इस तरह के आयोजन केवल फाटो खिंचवाने के साधन बन गए हैं। 


एक सेवानिवृत्त सैनिक/वीर नारी /वीरता पदक विजेता  जब किसी काम से 30 - 40 किलोमीटर चलकर अपने किसी काम से जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों में जाता है तो उसको `कल आना’ की कार्यशैली का सामना करना पड़ता है। जिलों में सेवानिवृत्त सैनिकों के काम/कल्याण  के लिए स्थापित जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों में कुर्सी पर बैठे लोग तरह तरह के बहाने बनाते हैं, कभी साहब नहीं हैं कभी बड़े बाबू नहीं है। इस काम में इनका शीर्ष कार्यालय निदेशालय सैनिक कल्याण भी इनसे पीछे नहीं है , वह भी इसी मनोवृत्ति का शिकार है। सूचना क्रांति के युग में जहाँ केंद्र सरकार और राज्य सरकार का हर विभाग अपनी सूचनाओं को लोगों को पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सूचनाएं पहुंचे और लोग लाभान्वित हो वहीं उत्तर प्रदेश के कई जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों में इसके उलट है।  


केन्द्रीय सैनिक बोर्ड और राज्य सैनिक बोर्ड द्वारा चलायी जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की जानकरी के लिए उत्तर प्रदेश के जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों आज भी 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में बनाये गए नोटिस बोर्ड लटक रहे हैं । उत्तर प्रदेश के 70 प्रतिशत जिलों में आज भी गावों में रह रहे सेवानिवृत्त सैनिकों तक सूचनाएं पहुँचाने के लिए कोई साधन नहीं है, जबकि प्रदेश सरकार की ओर से सभी जिला सैनिक कल्याण अधिकारियों को सी यू जी नंबर उपलब्ध कराये गये हैं  । प्रदेश के लगभग सभी जनपदों में सैनिकों और सेवानिवृत्त सैनिक को रुकने के लिए गेस्ट हाउस बनाये गए हैं, पहले तो इनको बुक करना टेढ़ी खीर है, और यदि किसी तरह बुक हो भी गया  तो उनमें एक बार जाने के बाद कोई दुबारा जाने की हिम्मत नहीं करता है  । उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सैनिकों की समस्याओं के समाधान के लिए “सैनिक बंधु” बैठक का आयोजन हर माह  किए जाने की व्यवस्था बनायी गयी है लेकिन इसकी पहुँच केवल शहरों तक सीमित है, गांव में निवास कर रहे सैनिकों को इसके बारे में न के बराबर जानकारी है।  सरकार को इस तरह की व्यवस्था बनानी चाहिए की गावों में रह रहे सेवानिवृत्त सैनिकों/वीर नारियों  /वीरता पदक विजेताओं को दी जाने वाली सुविधाओं की जानकारी  बिना किसी अड़चन के अनवरत उन तक पहुंचें और वह उनका लाभ उठा सकें। सेवानिवृत्त सैनिक दिवस मनाने की सार्थकता तभी है जब सेवानिवृत्त सैनिकों की समस्याओं का समाधान त्वरित गति से हो और दैनिक जीवन में उनको उनके लिए बनाये गए कार्यालयों में किसी समस्या का सामना न करना पड़े और उन्हें `कल आना’ की कार्यशैली से निजात मिले । 


- हरी राम यादव

सूबेदार मेजर (ऑनरेरी)

      7087815074

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies