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भारत विश्व गुरु था तो वह अपनी औषधि संपदा की बदौलत - प्रो. एन के दुबे

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 भारत विश्व गुरु था तो वह अपनी औषधि संपदा की बदौलत - प्रो. एन के दुबे






हम भारती न्यूज़ से उत्तर प्रदेश चीफ व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की ख़ास ख़बर


गोरखपुर 01.मार्च.2025

इस्लामिया एजुकेशनल सोसाइटी बक्शीपुर के तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के आचार्य एन के दुबे एवं दुसरे वक्ता के रूप में गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के आचार्य वीना बत्रा कुशवाहा और इस्लामिया कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के प्रबंधक श्री शोएब अहमद उपस्थित थे।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वनस्पति विभाग, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य एन. के दुबे ने अपने उद्बोधन में कहा कि हम अपने पुराने पारंपरिक औषधि ज्ञान के द्वारा अपने शरीर को स्वस्थ रखते थे। भारत में तरह-तरह के औषधीय पौधे पाए जाते हैं और हम इनके प्रयोग से बहुत सारी औषधीयां तैयार करते हैं। 

हमारे देश में आयुर्वेदिक पद्धति का इतिहास लगभग 60 हज़ार साल पुराना है। तुलसी मैं वह गुण है जो बीमारी को रोकने में सहायता देता है। परंतु 17वीं 18वीं शताब्दी में एंटीबायोटिक की खोज हुई। एंटीबायोटिक की गोली को मैजिक बुलेट का नाम दिया गया है इससे ज्ञात हुआ है कि जो बीमारी 30 से 40 दिनों में समाप्त होती थी। एंटीबायोटिक गोली के द्वारा अब वह तीन-चार दिन में समाप्त होने लगी। इस प्रकार हम अपनी प्राकृतिक औषधियां से दूर हो गए। यदि भारत विश्व गुरु था तो वह अपनी औषधि संपदा की बदौलत। हमें अपनी औषधि संपदा को बचाना भी होगा और नई पीढ़ीयों तक पहुंचाना भी होगा।

प्रथम सत्र की दूसरी वक्ता गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के जीव विज्ञान के आचार्य वीना बत्रा कुशवाहा ने बताया कि कोशिकाओं में ऑक्सीकरण-कमी प्रतिक्रियाओं और रेडॉक्स वातावरण को संतुलित रखने की प्रक्रिया को रेडॉक्स होमियोस्टेसिस कहते हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे शरीर में ऑक्सीडेशन और रिडक्शन दोनों की प्रक्रिया होती है। जब से ऑक्सीजन इस धरती पर आया और ऑक्सीजन के वातावरण के अनुकूल जीव जंतु आए। तब से ऑक्सीजन का प्रयोग आरंभ हो गया। वातावरण में भी ऑक्सीडेशन और रिडक्शन की प्रक्रिया चलती रहती है इन सब का आपस में संबंध होता है जो प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखते हैं। प्रथम सत्र के कार्यक्रम का संचालन पूजा श्रीवास्तव ने किया। दूसरे सत्र में क्षेत्रीय चिकित्सा शोध केंद्र गोरखपुर के निदेशक डॉ हरिशंकर जोशी ने बताया कि एक समय था कि पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस का केस बहुत अधिक थे। परंतु सरकार की जागरूकता से इस पर काबू पाया जा सका है। उन्होंने बताया कि इसका कार्य क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश था। सरकार ने इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए जो पहल की है उससे कहीं आवश्यक यह है कि हम स्वयं जागरूक हो तभी हम पूरी तरह सुरक्षित रह सकते हैं।

कार्यक्रम में आईआईटी बी एच यू बनारस के सहायक उप आचार्य डॉ विनोद तिवारी ने शरीर में के विभिन्न अंगों में होने वाले दर्द और उसके निवारण के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि कैंसर में होने वाले दर्द के क्या कारण हैं और इसको किस तरह से रूका जा सकता है। तीसरे वक्ता के रूप में डॉ स्मृति ओझा ने बताया कि एक समय था की हम औषिधि निर्यात में हम पिछे थें लेकिन कोरोना काल के समय हम ने कोरोना का टीका तैयार किया और दूसरे देशों में निर्यात भी किया जो हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं।

इस्लामिया कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, बक्शीपुर गोरखपुर के प्रबंधक श्री शोएब अहमद ने आए हुए आगंतुको का स्वागत किया। उन्हें स्मृति चिन्ह और अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया। कार्यक्राम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए श्री शोएब अहमद ने कहा कि इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्टी में विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। साथ ही शोध छात्रों ने विभिन्न विषयों पर जो शोध पत्र प्रस्ततु किये वो अन्य छात्रों के भविष्य के निर्माण में में मील का पत्थर सबित होगा। उन्होनें कालेज के शिक्षक एवं कर्मचारीगण के सहयोग के लिए अभार व्यक्त किया।

कार्यक्रम का संचालन शीरीन परवेज ने किया। इस अवसर पर  प्राचार्य डॉ. शाहिद जमाल, डॉ राहुल मिश्रा, डॉ विश्वजीत सिंह, डॉ डी एन मिश्रा, श्री शरजील लारी के अतिरिक्त इस्लामियॉ कालेज आफ कामर्स तथा ताहिरा इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, गीडा, गोरखपुर के समस्त अध्यापक गण एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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