यूं ही नहीं BJP का गढ़ कहा जाता है गोरखपुर।
योगी को अपने प्रतिद्वंद्वी से मिलता रहा है तीन गुना ज्यादा वोट।
गोरखपुर में चुनाव दर चुनाव योगी आदित्यनाथ का मत प्रतिशत बढ़ रहा है। योगी आदित्यनाथ के राजनीति में आने के बाद गोरखपुर भाजपा का गढ़ बनता गया और वर्तमान समय में योगी को यहां अजेय माना जाने लगा है।
गोरखपुर सदर से पांच बार सांसद रह चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज जब शहर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं तो लोकसभा चुनाव के दौरान शहर विधानसभा क्षेत्र में उनके प्रदर्शन का विश्लेषण मौजू है। जानकर ताज्जुब होगा कि मुख्यमंत्री का प्रत्याशी बनने के बाद देश भर की निगाह पर चढ़ने शहर विधानसभा क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के दौरान प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी दूर-दूर का नजर नहीं आते रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक योगी को शहर विधानसभा में प्रतिद्वंद्वी से तीन गुना वोट मिलता रहा है। यानी आंकड़े एकतरफा लड़ाई की ओर इशारा कर रहे हैं।
एकतरफा लड़ाई की ओर इशारा कर रहे हैं वोट के आंकड़े;
अब जरा गोरखपुर शहर क्षेत्र में सांसद के रूप में योगी आदित्यनाथ को मिले वोट पर गौर करें। योगी और उनके खिलाफ लड़े अन्य दलों के प्रत्याशियों में दूर-दूर तक कोई मुकाबला ही नहीं दिखा। योगी पांच बार सांसद रहे हैं और हमेशा ही शहर क्षेत्र से उन्हें बंपर वोट मिले। उनके आखिरी दो चुनावों के आंकड़ों की पड़ताल करें तो 2009 के संसदीय चुनाव में उन्हें गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से कुल पड़े 122983 मतों में से 77438 वोट मिले जबकि दूसरे स्थान पर रहे बसपा के विनय शंकर तिवारी को केवल 25352 वोट। उस समय यहां सपा को महज 11521 मत हासिल हुए थे।
बढ़ता गया जीत का अंतर;
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तो योगी को मिले वोटों का ग्राफ और बढ़ गया। 2014 के संसदीय चुनाव में गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से कुल पोल हुए 206155 वोटों में से अकेले 133892 वोट मिले। दूसरे स्थान पर रहीं सपा की राजमती निषाद को 31055 और बसपा के रामभुआल निषाद को 20479 वोट ही हासिल हो सके। 2017 में मुख्यमंत्री बन जाने के कारण 2019 के आम लोकसभा चुनाव में योगी की जगह रवि किशन शुक्ल प्रत्याशी बने तो शहर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी का वोट बैंक बरकरार रहा। रवि किशन को शहर क्षेत्र में पड़े कुल 234899 मतों में से 156243 वोट मिले जबकि बसपा के साथ गठबंधन करने वाली समाजवादी पार्टी के राम भुआल निषाद को 67584 वोट। कांग्रेस प्रत्याशी मधुसूदन त्रिपाठी को केवल 8877 वोट ही संतोष करना पड़ा।
1967 से शुरू हुआ शहर सीट पर भाजपा का दबदबा;
1967 और 1974 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर सदर की सीट पर जनसंघ का दबदबा रहा। 1977 के चुनाव में जनसंघ जनता पार्टी का हिस्सा बनकर चुनाव मैदान में थी। इसके बाद 1980 और 1985 के चुनाव को छोड़ दें तो 1989 से लेकर अबतक यह सीट भाजपा के पाले में रही है, जिसमें 2002 के विधानसभा चुनाव को प्रकारांतर से इसी कड़ी जोड़ा जा सकता है, जिसमें हिंदू महासभा के टिकट पर डा. राधा मोहन दास अग्रवाल जीते। अगले तीन चुनाव में वह भाजपा के टिकट पर जीतते रहे। एक वाक्य में अगर कहा जाए तो पूर्व में गोरखपुर सदर नाम से अस्तित्व में रही इस सीट पर अबतक हुए 17 चुनावों में 10 बार जनसंघ, हिंदू महासभा और भाजपा परचम लहरा चुीकी है जबकि एक बार जनसंघ के नेता को जनता पार्टी के बैनर तले जीत मिली। अपने अभ्युदय काल और इंदिरा-सहानुभूति लहर में छह बार कांग्रेस को जीत मिली। पर, गत तीन दशक से कांग्रेस को जमानत बचाने के भी लाले पड़ गए तो सपा, बसपा का तो आज तक यहां खाता भी नहीं खुल पाया है।
गोरखपुर शहर से अबतक निर्वाचित भाजपा के विधायक
1967 : उदय प्रताप (जनसंघ)
1974 : अवधेश श्रीवास्तव (जनसंघ)
1977 : अवधेश श्रीवास्तव (जनता पार्टी)
1989 : शिव प्रताप शुक्ल (भाजपा)
1991 : शिव प्रताप शुक्ल (भाजपा)
1993 : शिव प्रताप शुक्ल (भाजपा)
1996 : शिव प्रताप शुक्ल (भाजपा)
2002 : डा. राधा मोहन दास अग्रवाल (हिंदू महासभा)
2007 : डा. राधा मोहन दास अग्रवाल (भाजपा)
2012 : डा. राधा मोहन दास अग्रवाल (भाजपा)
2017 : डा. राधा मोहन दास अग्रवाल (भाजपा)। हम भारती न्यूज से गोरखपुर जिला चीफ ब्यूरो धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
यूं ही नहीं BJP का गढ़ कहा जाता है गोरखपुर। योगी को अपने प्रतिद्वंद्वी से मिलता रहा है तीन गुना ज्यादा वोट।
फ़रवरी 02, 2022
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