संवाददाता हम भारती न्यूज़
अज़हर शेख , मुम्बई महाराष्ट्र
आदिवासियों का गांव बदला ,बना रोल मॉडल
पालघर : - पालघर के आदिवासियों क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव अखबारों की सुर्खियां बनती रहती है। लेकिन जव्हार तालुका के बरवाडपाडा ग्राम पंचायत में वह सभी सुविधाएं मौजूद हैं, जिसकी किसी भी गांव में रहने वाले व्यक्ति की तमन्ना होती है।
यहां की आबादी 1039 है
गांव में पहुँचते ही लगे सीसीटीवी कैमरे देखकर पंचायती राज का सपना यहां साकार होता दिखाई देता है। गांव के 100 प्रतिशत लोग शौचालय का प्रयोग कर रहे हैं। गांव के सफलता की कहानी केंद्र सरकार के ग्रामीण स्वच्छता विभाग की वेबसाइट पर भी प्रकाशित की गई है।दादरा नगर हवेली की सीमा पर सुदूर इलाके में स्थित बरवाड़पाड़ा गांव में 189 परिवार रहते है और यहां की आबादी 1039 है।
धीरे-धीरे जमीन में रिसने लगता है
खड्डों के बीच एक 100 लीटर क्षमता का प्लास्टिक टैंक रखा गया है चारों ओर रेत, ईंट और पत्थर भरे गए हैं टैंक को सीमेंट की थैलियों और मिट्टी से ढक दिया गया है। किचन या बाथरूम और घर के अन्य हिस्सों से निकलने वाला सीवेज नाले में प्लास्टिक की टंकी से जुड़ा होता है। प्लास्टिक की टंकी में छेद होने से पानी धीरे-धीरे जमीन में रिसने लगता है। टैंक के तल पर कचरे को समय-समय पर साफ किया जा सकता है और इस गड्ढे का पुन: उपयोग किया जा सकता है। ग्रामीणों का यह अभिनव प्रयोग चर्चाओं में है।
जिला कार्य योजना में शामिल किया गया
मनरेगा योजना के तहत अपशिष्ट जल प्रबंधन के लिए गांव के 156 परिवारों ने व्यक्तिगत जल निकासी गड्ढों के लिए आवेदन किया और ये कार्य पूरे हो गए। 33 कार्य प्रगति पर हैं। एक खड्डे को बनाने की लागत 2750 है। रोजगार गारंटी योजना के माध्यम से लाभार्थियों को अकुशल और कुशल श्रमिक मिल रहे हैं। सीमेंट टैंक की तुलना में प्लास्टिक टैंक किफायती हैं, परिवहन में आसान हैं, 10 से अधिक वर्षों तक चल सकते हैं और साफ करने में आसान हैं। इसकी कीमत कम होने की वजह से यह फिलहाल चर्चा में है। इस पहल में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है। इससे भूजल स्तर सुरक्षित रहने से क्षेत्र में पानी की उपलब्धता बढ़ेगी।इस गांव को 2021-2022 में ठोस कचरा और सीवेज प्रबंधन के लिए जिला कार्य योजना में शामिल किया गया है।