नाथनगर ब्लॉक में मनरेगा की फाइलों को तीन टेबलों से गुजारने में छूट जाते हैं प्रधानों के पसीने
हम भारती न्यूज से गोरखपुर जिला ब्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
पंचायत चुनाव की दुदुंभी जब साल भर पहले बजी थी तो तब के तमाम दावेदार और अब के माननीय प्रधान खुद को शूरमा साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे थे। सर पे सेहरा बंधा तो गांवों में उनके समर्थक भी अपनी प्रधान रूपी तोप से विकास के अंगारे बरसने की उम्मीद पाल बैठे थे। ज्यों ज्यों समय आगे बढ़ने लगा तो कमजोर पड़ता माननीय प्रधानों जहां आत्मबल कमज़ोर होता नजर आने लगा वहीं उनके समर्थकों की अपने प्रधानों की दमदारी से उम्मीदें भी टूटने लगी। इन सबके पीछे योगी सरकार के प्रशासनिक जिम्मेदारों की लार टपकाती नीति जिम्मेदार है। जिले के आला अधिकारियों की उदासीनता है सहभागिता कि वे अपने अधीनस्थों की या तो कार्यप्रणाली को महसूस ही नही करना चाहते या फिर खुद की हिस्सेदारी पा कर नजरें फेरने में ही अपनी भलाई महसूस करते हैं। ऐसे हालात का नजारा देखना हो तो संतकबीरनगर जिले के नाथनगर ब्लॉक में आईए। यहां तो मनरेगा से विकास कराने के लिए प्रधानों को ब्लॉक में बने तीन बेहद महंगी टेबलों से विकास की फाइलों को धकेलने में पसीने छूट जाते हैं। जी हां इसी धक्का मुक्की में शासन से निलंबित हो चुके एक बीडीओ की जगह चार्ज लिए प्रमोटी बीडीओ को तो मानो कोई सीख ही नही मिली। फाइल स्वीकृति के समय और काम के बाद भुगतान के समय इनके टेबल पर झुकने से प्रधानों की जहां कमर झुक जा रही है वही बाकी का कसर ब्लॉक के वित्तीय मुखिया और मनरेगा के ब्लॉक के सबसे बड़े टेक्निकल साहब निकाल दे रहे है। हां अगर आप इन दोनो साहबान के अजीज हुए तो फिर आप की बल्ले बल्ले। वैसे बीडीओ का फरमान इन्ही साहबान के माध्यम से पंचायत सचिवों तक भी पहुंच जाता है। अगर साहबों की कसौटी पर प्रधान खरे उतरे तो सचिव को भी पटरी से धकिया दिया जाता है और अगर प्रधान खुद का रुतबा बनाने की कोशिश किए तो सचिव महोदय को भी बहती गंगा में डुबकी लगाने का मौका पक्का। वैसे भ्रष्टाचार मिटाने की जिद पालने वाली आवाम भी अब इस खेल को खेलते खेलते शायद थक गई है या फिर लोकतंत्र का क्रिया कर्म करके प्रधान बने संघर्षशील और कर्मठ माननीय की आत्मा ने भी खुद को साहबों की शरण में समर्पण कर दिया है? इसका जबाव तो योगी सरकार के काबिल अधिकारी ही दे पाएंगे।