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गोरखपुर विश्वविद्यालय और रक्षा अध्ययन विभाग के लिए शर्मिंदगी और आत्म चिंतन का समय

 गोरखपुर विश्वविद्यालय और रक्षा अध्ययन विभाग के लिए शर्मिंदगी और आत्म चिंतन का समय




हम भारती न्यूज से उत्तर प्रदेश चीफ व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की ख़ास ख़बर


  गोरखपुर पिछले एक सप्ताह के अपने गांव (कुशमहरा- आजमगढ़) प्रवास के पश्चात् कल गोरखपुर लौटने पर विश्वविद्यालय से जुड़ी एक खबर ने मुझे शर्मिंदा भी किया और आक्रोशित भी। रक्षा अध्ययन विभाग में प्रोफेसर वी के सिंह जैसे नायाब  कुलपति के कार्यकाल में नियुक्ति पाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर जितेंद्र कुमार द्वारा विभाग की ही एक छात्रा के कथित यौन उत्पीड़न की खबर ने कहीं अंदर तक झकझोर दिया। अभी कुछ  दिन पहले ही विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर द्वारा किसी छात्रा के यौन उत्पीड़न की खबर से विश्वविद्यालय के लांछित और अपमानित होने की खबर ठंडी भी नहीं हो पाई थी कि यौन उत्पीड़न की इस दूसरी घटना से सारा समाज विश्वविद्यालय की ओर हतप्रभ और हिकारत भरी नजरों से देख रहा है। क्या हो गया है इस विश्वविद्यालय को ? पंडित दीनदयाल उपाध्याय जिनके नाम पर इस विश्वविद्यालय का नामकरण किया गया है, पंडित सुरति नारायण मणि त्रिपाठी जिन्होंने गोरखपुर में इस विश्वविद्यालय की स्थापना का सपना देखा था और गोरक्षपीठ के पूर्व पीठाधीश्वर युगपुरुष ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज जिन्होंने अपने महाविद्यालय को भूमि- भवन और संपूर्ण संसाधनों सहित प्राभूत के रूप में उपलब्ध करा कर गोरखपुर में इस विश्वविद्यालय की स्थापना के सपने को साकार किया, आज उन सबकी आत्मा निश्चय ही कराह रही होगी, कोस रही होगी, विश्वविद्यालय के वर्तमान हालात को देखकर।

         इसकी तफसील में जाने पर इस शर्मनाक घटना के कुछ विचारणीय बिंदु तो हैं ही, जैसे -------

1- इस असिस्टेंट प्रोफेसर द्वारा की जाने वाली यह पहली वारदात तो है नहीं। इसके पहले भी खुले- दबे रूप में इस तरह की शिकायतें आती रहीं थीं तो उस वक्त विभाग और विश्वविद्यालय प्रशासन ने क्या किया ?

2- इस घटना की भी संबंधित छात्रा द्वारा महीनों पहले विश्वविद्यालय प्रशासन में शिकायत की गई थी। तब विश्वविद्यालय प्रशासन क्यों सोया रहा ?

3- ऐसा लग रहा है कि घटना में वर्तमान जांच- पड़ताल और निलंबन की सारी कार्रवाई विश्वविद्यालय प्रशासन अपने किसी दायित्व बोध के कारण कर रहा हो, ऐसा भी नहीं है, बल्कि छात्र आंदोलन, महिला आयोग, कुलाधिपति और अन्य उच्चतर संस्थाओं  को प्रेषित पत्रों के दबाव में कर रहा है।

4- ऐसी घृणित हरकतों के अतिरिक्त इस असिस्टेंट प्रोफेसर द्वारा अनेकों बार विभाग के अपने वरिष्ठ आचार्यों के साथ भी अनुशासनहीन और अशिष्ट आचरण  किया गया था किंतु तब विभाग द्वारा कतिपय कारणों से अनदेखा और अनसुना ही नहीं किया गया बल्कि आंतरिक गोलबंदी के कारण उसे प्रश्रय और समर्थन भी दिया गया।

5- अपने अहंकार के वशीभूत  विश्वविद्यालय की सभी संस्थाओं को रसातल में पहुंचाने वाले इस विश्वविद्यालय के इतिहास के महानतम कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह की विशेष अनुकम्पा से  पुरस्कार स्वरूप इस असिस्टेंट प्रोफेसर को एन एस एस का कार्यक्रम समन्वयक, आपदा प्रबंधन का संयोजक और वरिष्ठ आचार्यों को दिए जाने वाले पदों का प्रसाद प्रदान करते हुए इस शिक्षक का दुस्साहस इस कदर बढ़ाया गया यह विभागाध्यक्ष और विभाग के वरिष्ठ आचार्यों को नक्कू समझने लगा।

6- यौन उत्पीड़न की यह कथित घटना कोई एक दिन में किया जाने वाला दुस्साहस नहीं है बल्कि ऐसे अनेक दुस्साहसों को अनदेखा करने की परिणति है जिसके लिए कुछ हद तक विभाग और ज्यादातर विश्वविद्यालय प्रशासन जिम्मेदार है।

देखा जो गौर से तुम्हारे जुर्म की किताब,

हर एक वजह में जिम्मेदार मैं ही मैं दिखा।

7- इसी विभाग से निकलकर कुलपति बनने वाले स्वनामधन्य प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद के यहां कथित रूप से आर्थिक कदाचार के आरोप में छापे पड़े, नोटों का जखीरा और भारी भरकम हीरे- मोती, जवाहरात बरामद हुए तथा आज वे जेलों के अन्दर - बाहर हो रहे हैं। समझ में नहीं आता कि एक जीवन जीने के लिए कितने पैसों की जरूरत पड़ती है।

8- समस्या की तह में जाने पर मुझे एक कारण और दिखता है और वह है हमारे पढ़े-लिखे समाज की अतिशय सुरक्षित और निरापद जीवन जीने की शुतुरमुर्गी आकांक्षा। किसी से अप्रिय बनने, किसी विवाद में पड़ने और वर्तमान दौर में एससी एसटी एक्ट की धारा में फंसने के भय का हवाला भी दिया जाता है। इस मानसिकता ने हम सबको और अधिक भीरु एवं भयाक्रांत बना रखा है, इससे उबरने की जरूरत है। इतना डर-डर कर जीने का तात्पर्य है रोज- बा- रोज मरना, नैतिक रूप से अपनी खुद की नजरों में।

9- रक्षा अध्ययन के इसी विभाग और विश्वविद्यालय से जुड़ा होने के कारण मुझे इन घटनाओं ने दोहरी पीड़ा यंत्रणा और आक्रोश दिया है। आचार्य की सबसे अच्छी परिभाषा यही दी जाती है कि आचार्य वह है जो अपने आचरण से अपने छात्रों और समाज को प्रेरित करने की क्षमता और दक्षता रखता हो। ऐसे मोड़ पर विश्वविद्यालय के आचार्यों को इस परिभाषा के आईने में अपने को देखना होगा। मेरा स्पष्ट अभिमत है कि अपने सारस्वत दायित्वों के प्रति सन्नद्ध और प्रतिबद्ध बहुसंख्यक आचार्यों (शिक्षकों) के बीच एक- दो गंदी मछलियां पूरे तालाब को बदबूदार कर रही हैं। मेरी गुजारिश है कि विश्वविद्यालय की संबंधित समितियां, संस्थाएं और प्रशासन अपने दायित्व का निर्भीकता एवं गंभीरता पूर्वक निर्वहन करते हुए सम्यक् जांचोपरांत एग्जम्पलरी पनिशमेंट सुनिश्चित करें अन्यथा ऐसी घटनाएं आगे भी होती रहेंगी और एक दिन यह विश्वविद्यालय सामाजिक वितृष्णा और जनाक्रोश के निशाने पर होगा।।

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल ब्याध,

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास।

             डॉ श्री भगवान सिंह

 प्राचार्य --गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ महाविद्यालय, चौक बाजार, महाराजगंज।

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