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महराजगंज प्रोफेसर सिब्बन लाल सक्सेना को आज भी महराजगंज की धरती एक मसीहा के तौर पर याद करती है। आजादी के बाद वर्ष 1952 में हुए पहले आम सभा चुनाव में वह पहली बार निर्दल प्रत्याशी के रूप में सांसद निर्वाचित हुए थे।

 महराजगंज लोकसभा सीट समीकरण


पूर्वांचल के गांधी की धरती पर पंकज चौधरी ने बनाया शानदार रिकॉर्ड,क्या विपक्षी एकता इस बार बदल पाएगी फिजा


हम भारती न्यूज से उत्तर प्रदेश चीफ व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की ख़ास ख़बर


महराजगंज  प्रोफेसर सिब्बन लाल सक्सेना को आज भी महराजगंज की धरती एक मसीहा के तौर पर याद करती है। आजादी के बाद वर्ष 1952 में हुए पहले आम सभा चुनाव में वह पहली बार निर्दल प्रत्याशी के रूप में सांसद निर्वाचित हुए थे।



बता दें कि भारत-नेपाल की सीमा पर बसे यूपी का महराजगंज लोकसभा क्षेत्र का समृद्ध प्रजातांत्रिक इतिहास रहा है। आजादी के बाद इस सीट से छह बार चुनाव जीतने का रिकार्ड भाजपा सांसद और वर्तमान केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी के नाम है। उनके पहले पूर्वांचल के गांधी के रूप में मशहूर प्रोफेसर सिब्बन लाल सक्सेना महराजगंज सीट से चार बार सांसद निर्वाचित हुए थे। हर्षवर्धन और महादेव प्रसाद दो-दो बार यहां से निर्वाचित होकर लोकसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने पहुंचे थे। लेकिन पिछले तीन दशक की राजनीति पर गौर करें तो विपक्ष केवल दो बार ही भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगा पाया। छह बार के सियासी सफर में पंकज चौधरी एक बार जीत का हैट्रिक लगा चुके हैं। उनके समर्थक इस बार इसे दोहराने का दम भर रहे हैं जबकि विपक्ष बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए बिखरी ताकत को एकजुट करने की कोशिश में है। यह देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा यहां अपनी साख को बरकरार रख पाएगी या फिर विपक्षी एका कोई नया गुल खिलाएगा।


कभी कोशल राज्य का अंग रहे चुके इस क्षेत्र में नवाबों के दौर के पहले राजपूत राजाओं का शासन था। इस धरती का इतिहास भगवान बुद्ध के ननिहाल से भी जुड़ा है। ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ बगावत में जहां इस इलाके के लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सेदारी की वहीं आजादी के बाद प्रोफेसर से नेता बने स्वतन्त्रता सेनानी सिब्बन लाल सक्सेना की अगुवाई में महराजगंज की धरती ने संघर्ष का फलसफा ठीक से सीखा। आजीवन अविवाहित रहे सिब्बन लाल सक्सेना जीवन भर दलितों, शोषितों के उत्थान के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने इस सीट से चार बार जीत हासिल कर एक रिकॉर्ड बनाया था जिसे मौजूदा सांसद पंकज चौधरी ने छह बार जीतकर तोड़ दिया। प्रोफेसर सिब्बन लाल सक्सेना को आज भी महराजगंज की धरती एक मसीहा के तौर पर याद करती है। आजादी के बाद वर्ष 1952 में हुए पहले आम सभा चुनाव में वह पहली बार निर्दल प्रत्याशी के रूप में सांसद निर्वाचित हुए थे। दूसरे चुनाव में भी निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव में उतरे और जीत हासिल की। 1971 में भी निर्दल और अंतिम बार 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर रघुबर प्रसाद को हराकर सांसद बने। उनका निधन 20 अगस्त 1984 को हुआ।


नब्बे के दशक में भाजपा ने बनाई पैठ


1990 के बाद यहां की राजनीति में भाजपा ने पैठ बना ली। तबसे अब तक यहां हुए आठ लोकसभा चुनाव में भाजपा को छह बार जीत मिली। इस बीच एक बार कद्दावर नेता स्व. हर्ष बर्धन ने कांग्रेस के टिकट पर तो एक बार कुंवर अखिलेश सिंह ने सपा के टिकट पर जीत हासिल कर भाजपा के विजय रथ को रोका। अब केन्द्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार है और महराजगंज के सांसद पंकज चौधरी केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री हैं।


विधानसभा सीटों का गणित


महराजगंज लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले पांच विधानसभा क्षेत्रों में से तीन पर भाजपा, एक पर उसकी सहयोगी निषाद पार्टी और एक पर कांग्रेस का कब्जा है। महराजगंज सदर से भाजपा के जय मंगल कन्नौजिया, फरेंन्दा से कांग्रेस के वीरेन्द्र चौधरी, नौतनवां से भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के ऋषि त्रिपाठी, सिसवा से भाजपा के प्रेमसागर पटेल और पनियरा से भाजपा के ज्ञानेंद्र सिंह ने 2022 के चुनाव में जीत हासिल की।


सीट के जातीय समीकरण


महराजगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी 56 प्रतिशत से अधिक है। यहां के ओबीसी समुदायों में कुर्मी-पटेल, चौरसिया, निषाद, यादव, मौर्य, चौहान, सोनार, नाई और लोहार शामिल हैं। जबकि उच्च जाति समुदायों में ब्राह्मण कुल मतदाताओं का 12 प्रतिशत हैं। क्षत्रिय और कायस्थ समुदाय का एक छोटा प्रतिशत भी यहां रहता है। दलित आबादी में बहुसंख्यक जाटव हैं। दलितों में जाटवों के अलावा धोबी और पासी भी शामिल हैं। मुस्लिम मतदाता भी यहां संख्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण हैं। यहां अनुसूचित जनजाति की दो जातियां भी निवास करती हैं। महराजगंज के सांसद पंकज चौधरी कुर्मी समुदाय से हैं। पिछड़ी जाति के बड़े नेताओं में उनकी गिनती है। सियासी रणनीति में म…

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