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सशस्त्र सेना झंडा दिवस : 07 दिसंबर 2024

 सशस्त्र सेना झंडा दिवस : 07 दिसंबर



    हमारी भारतीय सेना विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है जिसमें लगभग 14  लाख सशस्त्र सैनिक तथा लगभग 12 लाख आरक्षित सैनिक हैं। हमारी सेना ने आजादी से पहले भी प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया था। प्रथम विश्व युद्ध में हमारी भारतीय सेना के 62,000 सैनिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और 67,000 सैनिक घायल हुए थे तथा द्वितीय विश्व युद्ध में 36,000 भारतीय सैनिको ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और लगभग 34,354 सैनिक घायल हुए थे । द्वितीय विश्व युद्ध में अदम्य साहस के प्रदर्शन के लिए 31 भारतीय सैनिकों को उस समय का सर्वोच्च वीरता सम्मान "विक्टोरिया क्रास" और 07 को जार्ज क्रास प्रदान किया गया था। 


     यदि हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो प्रथम विश्व युद्ध से उपजे हालात के कारण ही उत्तर प्रदेश में अंग्रेजी शासन द्वारा सन् 1917 में वार बोर्ड की स्थापना की गयी थी क्योंकि इस युद्ध में उत्तर प्रदेश के काफी सैनिकों को विभिन्न देशों में भेजा गया था और इन्ही सैनिकों  के अभिलेखों के व्यस्थापन के लिए तत्कालीन अंग्रेजी सरकार को वार बोर्ड की स्थापना की आवश्यकता महसूस हुई थी।  सन् 1919 में दो वर्ष पश्चात वार बोर्ड का नाम परिवर्तित कर प्रान्तीय सोल्जर्स  बोर्ड कर दिया गया।  वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश  में द्वितीय विश्व युद्ध के लगभग 1054  सैनिक / उनके परिजन पेंशन प्राप्त कर रहे हैं । 


     स्वतंत्रता मिलने के पश्चात ही पड़ोसी देश पाकिस्तान ने हमारे देश पर  आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में हमारी  सेना के लगभग 1100 जवान वीरगति को प्राप्त हुए  तथा 3100 सैनिक घायल हुए थे। वीरगति प्राप्त और घायल सैनिकों के परिवार काफी पीड़ा में थे। उन्ही पीड़ित परिवारों के दर्द को देखते हुए तथा वीरगति प्राप्त सैनिकों की कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए सन् 1949 में  सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 07 दिसंबर को झंडा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया, तब से प्रति वर्ष 07 दिसंबर को भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों के कल्याण के लिए देश की जनता से दान के रुप में धन-संग्रह करने  तथा उन सैनिकों और उनके परिजनों का आभार व्यक्त करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है।


     हमारे देश द्वारा अब तक लड़े गए विभिन्न युद्धों तथा  सीमा पार से चलाये जा रहे आतंकवाद का मुकाबला करने के दौरान हमारी सेना के जवान अपने बहुमूल्य जीवन का बलिदान दे देते हैं, बहुत से सैनिक  गोली लगने या माइन्स फटने या कुछ अन्य कारणों से विकलांग भी हो जाते हैं। परिवार के मुखिया के आकस्मिक निधन या विकलांग होने से परिवार को जो आघात पहुंचता है, उसकी कल्पना करना कठिन है। इस स्थिति में वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवार और  विकलांग सैनिकों की देखभाल और पुनर्वास की आवश्यकता होती है ताकि वे खुद को अपने परिवार पर बोझ न समझें और सम्मान का जीवन जी सकें। इसके अलावा, ऐसे सेवानिवृत्त सैनिक  जो कैंसर, हृदय रोग आदि जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, उन्हें भी हमारी देखभाल और सहायता की आवश्यकता होती  है क्योंकि वे उपचार की मंहगी लागत को वहन करने में असमर्थ होते हैं।


    सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर हुए धन संग्रह से युद्ध के समय हुई जनहानि में सहयोग, सेना में कार्यरत कर्मियों, उनके परिजनों और सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके परिवार के कल्याण के लिए खर्च किया जाता है। इस दिवस पर धन संग्रह करने के लिए सशस्त्र सेना के प्रतीक चिन्ह झंडे, कार स्टीकर आदि  को बाँटा जाता है। इस झंडे में तीन रंग लाल, गहरा नीला और हल्का नीला हैं। यह हमारी तीनों सेनाओं को प्रदर्शित करते है। सन् 1949 से 1992 तक इसे झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता था लेकिन 1993 से इसे सशस्त्र सेना झंडा दिवस के नाम पर मनाने का निर्णय लिया गया।

 

    हमारे देश की सीमाएं बहुत विस्तृत तथा विविधताओं से भरी हुई हैं।    सीमाओं की विषम परिस्थितियों की परिकल्पना मात्र से शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन हमारे वीर  जवान अपनी मातृभूमि की रक्षा में सतत संघर्षशील है। हमारी तीनों सेनाओं के सैनिक तथा उनके परिवार देश की धरोहर है। उनकी देखभाल की जिम्मेदारी पूरे राष्ट्र  की है। हम अपने घरों में बिना किसी डर, भय और चिंता के चैन से सोते हैं क्योंकि सीमा पर हमारे बेटे मुस्तैद खड़े हैं। हमारा कर्तव्य है कि सीमा पर खड़े हमारे वीर जवान के परिजनों का हर संभव सहयोग करें ताकि देश की दुरूह सीमा पर खड़े हमारे सैनिक अपने परिवार की ओर से निश्चिंत होकर देश की रक्षा कर सकें।


    हमारी सेना का सैनिक सीमा पर देश की रक्षा करने के अतिरिक्त देश में उत्पन्न प्राकृतिक आपदाओं में भी अपने जान की बाजी लगाकर अपने नागरिकों की सुरक्षा करता है। जहाँ हमारी सरकार के सब साधन कम पड़ जाते हैं वहां हमारे सेना के बहादुर जवान देवदूत बने खड़े नज़र आते हैं, चाहे वह गुजरात में आया भूकंप हो या केदार घाटी में आयी त्रासदी हो या सिल्क्यारा सुरंग हादसा हो। हमारे सैनिकों ने देश के अलावा अंगोला, कंबोडिया, साइप्रस, कांगो, अल साल्वाडोर, नामीबिया, लेबनान, लाइबेरिया, मोजांबिक, रवांडा, सोमालिया, श्रीलंका तथा वियतनाम आदि देशों में भी  शांति सेना के रूप में तिरंगे को नील गगन में अपने शौर्य और सांसों से फहराया है।


    यदि हम किसी भी संकट के समय नजर दौड़ाएं तो हमारी सेना ब्रम्हास्त्र की तरह  "यत्र, तत्र, सर्वत्र" खड़ी नजर आयेगी। हमारी सेना अपने आदर्श वाक्य "सर्विस बिफोर सेल्फ" की भावना से देश की सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर खड़ी है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम भी अपनी सेना, सैनिकों और उनके परिजनों के साथ हर समय खड़े नजर आएं। अभी हाल के कुछ महीनों में दिल्ली, ग्वालियर, जयपुर , भुवनेश्वर तथा  रायबरेली में सैनिकों के साथ हुई  घटनाओं पर नजर डालें तो यह लगता है कि देश के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग और हमारे देश का सिविल प्रशासन हमारे सैनिकों के साथ खड़ा नजर नहीं आता। सैनिकों की इन्ही परेशानियों को देखते हुए सेना ने अभी हाल ही में एक हेल्पलाइन नंबर जारी  किया है , जो कि इतनी बड़ी सैनिक और सेवानिवृत्त सैनिक आबादी के लिए ऊंट के मुंह में जीरा है ।


    यदि हम वास्तव में अपने देश की सेना और सैनिकों के साथ खड़े होना चाहते हैं तो उनकी समस्याओं के समाधान के लिए हर राज्य के राज्य सैनिक बोर्ड में एक हेल्पलाइन नम्बर स्थापित होना चाहिए और सैनिकों की समस्या के समाधान के लिए एक अधिकारी और उसके साथ पूरा तंत्र खड़ा किया जाना चाहिए । सैनिकों के आये हुए प्रार्थना पत्रों पर कार्यवाही के लिए प्रभावी पैरवी करना चाहिए और उनकी निगरानी राज्य सैनिक बोर्ड से होनी चाहिए।उत्तर प्रदेश में सेवानिवृत्त सैनिकों की समस्याओं के  समाधान के लिए जिला सैनिक बंधु  की स्थापना की गयी है , लेकिन सेवानिवृत्त सैनिकों के बीच इस योजना का प्रचार प्रसार न के बराबर है , जिसके कारण सेवानिवृत्त सैनिक इसके माध्यम से अपनी समस्या का समाधान करवाने में विफल हैं । जिला सैनिक कल्याण कार्यालय केवल  आये हुए प्रार्थना पत्रों को संबंधित विभाग में भेजने का काम करता  है ।  जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों का अपना रोना है , वह मानव संसाधन की कमी से जूझ रहे हैं।


यदि हम  साधारण सैनिकों/ सेवानिवृत्त सैनिकों की समस्याओं को कुछ समय के लिए दरकिनार भी कर दें तो इससे ज्यादा चिंतनीय बात यह है कि वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिजन और  वीरता पदक विजेताओं के परिवार भी राज्य सरकार से मिलने वाली एकमुश्त राशि और वार्षिकी के लिए तथा देश के वीर सपूतों  के नाम को स्मरणीय बनाने  के लिए  सरकारी आफिसों के चक्कर काटते नजर आते हैं । किसी सैनिक के वीरगति प्राप्त होने के समय केवल बड़ी बड़ी घोषणाएं की जाती है लेकिन उसके बाद वह घोषणाएं दूर की कौड़ी नजर आती हैं। आओ इस झंडा दिवस के अवसर पर प्रतिज्ञा लें कि हम सैनिकों और उनके परिजनों के संग प्राथमिकता में खड़े होंगे और उनकी समस्याओं को उसी प्राथमिकता से दूर करेंगे जिस तरह “सर्विस बिफोर सेल्फ” की भावना से सैनिक देश की रक्षा करते हैं ।


       - हरी राम यादव 

       सूबेदार मेजर (आनरेरी)

       7087815074

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