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राज्यपाल ने किया ‘‘हिंदी का गद्य साहित्य’’ के 16वें संस्करण का लोकार्पण

 राज्यपाल ने किया ‘‘हिंदी का गद्य साहित्य’’ के 16वें संस्करण का लोकार्पण




विश्व हिंदू महासंघ उत्तर प्रदेश के योग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. विनय मल्ल एवं उपाध्यक्ष अशोक राजभर भी साक्षी बने


हम भारती न्यूज़ से उत्तर प्रदेश चीफ व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की ख़ास ख़बर


गोरखपुर राज्यपाल श्री शिव प्रताप शुक्ल ने आज यहां राजभवन में आचार्य श्री रामचन्द्र तिवारी जी द्वारा रचित ‘‘हिंदी का गद्य साहित्य’’ के 16वें संस्करण का लोकार्पण किया। यह कृति सुप्रसिद्ध साहित्यकार, आलोचक और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के हिंदी गौरव सम्मान (2006) से अलंकृत, गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष, दिवंगत आचार्य श्री रामचन्द्र तिवारी की अमूल्य धरोहर है। इस पुस्तक के संशोधन एवं परिवर्धन का कार्य श्री रामचन्द्र तिवारी के पुत्र डॉ. प्रेमव्रत तिवारी ने किया है। 


इस अवसर पर, राज्यपाल ने कहा कि साहित्य जगत में यह ग्रंथ हिंदी गद्य साहित्य के इतिहास को प्रामाणिकता, गहन शोध और आलोचनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय संदर्भ ग्रंथ माना जाता है। उन्होंने कहा कि इसका प्रथम संस्करण आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व, वर्ष 1955 में प्रकाशित हुआ था। और आज 16वाँ संस्करण, का सूत्रपात हुआ है। उनका लेखन हिंदी साहित्य-जगत के लिए दिशा-निर्देशक और प्रेरणास्रोत रहा है।


श्री शुक्ल ने कहा कि यह पुस्तक हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों, शोध अध्येताओं, शिक्षकों एवं साहित्यकारों के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में भारतेन्दु से लेकर फणीश्वर नाथ रेणु तक के हिन्दी के महत्वपूर्ण गद्यकारों का मूल्यांकन किया गया है। उन्होंने कहा कि आचार्य तिवारी और हिन्दी का गद्य साहित्य आज एक दूसरे का पर्यायवाची है। उन्होंने कहा कि यह कृति एक तरह से हिन्दी गद्य का कोष है।


कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के पूर्व प्रति कुलपति तथा दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने पुस्तक को हिन्दी गद्य का कोश बताया। उन्होंने कहा कि श्री तिवारी की आलोचना का विवेक किसी से प्रभावित नहीं था बल्कि अपने भावों से पढ़े साहित्य और आत्मविवेचन से प्रेरित था। वह आजीवन साहित्य के सत्य के अनुसंधान में लगे रहे। 


कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में निदेशक प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि हिन्दी साहित्य की विधा में उनका उच्च स्थान रहा है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक साहित्य के लिए अमूल्य निधि है, जिसका लाभ शोधार्थियों से लेकर साहित्य के जानकारों के लिए उपयोगी है। इस कार्यक्रम की अतिथि रहे विश्व हिंदू महासंघ  उत्तर प्रदेश के योग प्रकोष्ठ के  प्रदेश अध्यक्ष डॉ. विनय मल्ल एवं प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक राजभर जी ने विश्व हिंदू महासंघ की तरफ से महामहिम राज्यपाल हिमाचल प्रदेश को स्मृति चिन्ह देकर के सम्मानित किया साथ-साथ  महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा (महाराष्ट्र) के पूर्व प्रति कुलपति तथा दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चित्तरंजन मिश्र एवं प्रो0 हिमांशु चतुर्वेदी 

निदेशक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला  को स्मृति चिन्ह देकर के सम्मानित किया, महामहिम राज्यपाल हिमाचल प्रदेश जी ने विश्व हिंदू महासंघ  उत्तर प्रदेश योग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. विनय मल्ल एवं उपाध्यक्ष अशोक राजभर को अंग वस्त्र एवं  हिमाचली चली टोपी पहनाकर  सम्मानित किया, विश्व हिंदू महासंघ उत्तर प्रदेश की तरफ से पुस्तक की भूरी भूरी प्रशंसा की गईl

कार्यक्रम के संयोजक डॉ धर्मव्रत तिवारी ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।


राज्यपाल के सचिव श्री सी.पी. वर्मा, साहित्यकार और भारतीय अध्ययन संस्थान के फैलो भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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