हाता इस बार हुआ हताश पूर्वांचल की राजनीति में कभी इनकी भी थी मजबूत पहचान
गोरखपुर पूर्वांचल की राजनीति में काफी मजबूत पहचान रखने वाले पिछली कई सरकारों में लगातार मंत्री पद पर बने रहे तिवारी हाता को इस चुनाव में हताशा हाथ लगी है। समर्थकों को काफी निराशा हुई है। चिल्लूपार सीट से विनय शंकर तिवारी हार गए हैं। जिस राजेश त्रिपाठी को 2017 के चुनाव में बसपा के टिकट पर विनय ने पराजित किया था, उन्हीं से इस बार तगड़ी शिकस्त मिली है।
वर्ष 1985 के चुनाव में हरिशंकर तिवारी ने कांग्रेस प्रत्याशी मार्कंडेय चंद को पराजित कर पहली बार सदन की सीढ़ियां चढ़ी थीं। इसके बाद उन्होंने चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र की जनता के बीच मजबूत पकड़ बना ली और उसे कायम रखी। वर्ष 1989, 1991, 1993, 1996 और 2002 में हरिशंकर तिवारी लगातार चुनाव जीतते रहे। सबसे बड़ी बात रही कि वह हर सरकार में मंत्री भी बनते रहे। गोरखपुर में तिवारी हाता राजनीति का केंद्र बन गया। तिवारी हाता की ख्याति तब और बढ़ गई जब हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्मशंकर तिवारी खलीलाबाद से सांसद बन गए। इसके बाद हाता परिवार से जुड़े गणेश शंकर पांडेय विधान परिषद के सभापति बन गए।
हरिशंकर तिवारी को वर्ष 2007 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे राजेश त्रिपाठी से हार मिली। हरिशंकर तिवारी के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें पराजित करने वाले राजेश त्रिपाठी को इनाम के रूप में बसपा सरकार में मंत्री पद मिला। वर्ष 2012 में भी राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को पराजित कर दिया। लेकिन वर्ष 2017 के चुनाव में पासा पलट गया। हरिशंकर तिवारी के छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी को बसपा ने मैदान से उतारा। तत्कालीन बसपा विधायक राजेश त्रिपाठी भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे और चुनाव हार गए। विनय शंकर तिवारी विधायक बन गए। इस चुनाव में बाजी फिर पलट गई। बसपा से सपा में गए विधायक विनय शंकर तिवारी को भाजपा प्रत्याशी राजेश त्रिपाठी ने पराजित कर दिया। हम भारती न्यूज से गोरखपुर जिला ब्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
हाता इस बार हुआ हताश पूर्वांचल की राजनीति में कभी इनकी भी थी मजबूत पहचान
मार्च 12, 2022
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