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इंदौर से शव गांव आते ही मचा हाहाकार ,दाह संस्कार करने से परिजनों ने किया इन्कार, घंटो मशक्कत के बाद हुआ अंतिम संस्कार

 इंदौर से शव गांव आते ही मचा हाहाकार ,दाह संस्कार करने से परिजनों ने किया इन्कार, घंटो मशक्कत के बाद हुआ अंतिम संस्कार



हम भारती न्यूज से उत्तर प्रदेश चीफ व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की ख़ास खबर


महराजगंज थाना श्यामदेउरवां जिले  के श्यामदेउरवां थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत महुआ महुई निवासी संग्राम सिंह (42) की हृदय गति रुकने से मौत हो गई। वह पत्नी व बच्चों के साथ  इंदौर शहर (MP) में  रहते थे। रविवार को दोपहर उसका शव गांव आया तो परिजनों ने दाह संस्कार करने से इन्कार कर दिया।  इस बात की सूचना मिलते ही  नायब तहसीलदार देश दीपक त्रिपाठी, थानाध्यक्ष धर्मेंद्र कुमार सिंह दल बल के साथ गांव में पहुंचे और घंटों मशक्कत के बाद शव का अंतिम संस्कार कराया गया।


मिली जानकारी के अनुसार श्यामदेउरवां थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत महुआ महुई निवासी संग्राम सिंह ने 20 वर्ष पूर्व अपने ही गांव की रहने वाली लड़की गुड्डी जो अनुसूचित जाति की थी  उसके साथ प्रेम विवाह किया और उसे लेकर परदेस कमाने चले गए तथा घर वालों से कोई वास्ता नहीं था।

संग्राम सिंह वर्तमान में वह मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के एक लिमिटेड कंपनी में काम कर रहा था। शनिवार की सुबह लगभग 7 बजे वह ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकला। रास्ते में उसकी तबियत बिगड़ने लगी। स्थानीय लोगों ने उसे एक अस्पताल में भर्ती कराया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

इसके बाद पत्नी गुड्डी देवी रविवार को शव लेकर गांव पहुंची। संग्राम के पिता अमरेन्द्र सिंह ने शव का अंतिम संस्कार करने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि 20 वर्षों से हमसे कोई वास्ता नहीं है। इसके बाद गांव में हंगामा होने लगा।

इस बात की जानकारी मिलने पर नायब तहसीलदार देश दीपक त्रिपाठी, थानाध्यक्ष धर्मेंद्र कुमार सिंह दल बल के साथ गांव में पहुंचे और हंगामा शांत कराया। घंटों मशक्कत के बाद पत्नी दाह संस्कार के लिए तैयार हुई। मृतक के बेटे राज ने दी मुखाग्नि

तीन बेटी व एक बेटा के सर से उठ गया पिता का साया


मालूम हो कि महुआ महुई निवासी संग्राम सिंह की तीन बेटियां शीतल 18, काजल 16, राधा 14 व एक बेटा राज 12 है। चारों बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहकर ही पढ़ाई लिखाई करते थे। पिता की मौत से उनके उपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। उनके आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहें हैं। उधर जब उनके दादा ने उन्हें अपनाने से इन्कार कर दिया तो वह और भी बिलखने लगे। मां गुड्डी ने बताया कि अनुसूचित जाति की होने के कारण मेरे पति के घर वाले हम लोगों को अपनाने से इन्कार कर रहे हैं। पिछले 20 सालों से हम लोग बाहर रहकर ही अपना जीवन यापन कर रहे थे। हमें नहीं पता था कि अचानक ऐसा हो जाएगा। अब हम लोगों की देखभाल कौन करेगा। इतना कहते ही वह फुट फुटकर रोने लगी।

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