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पैदल सेना दिवस हर वर्ष 27 अक्टूबर को मनाया जाता है

 पैदल सेना दिवस (27 अक्टूबर)



      हमारा देश भारत लम्बे समय तक अंग्रेजों के अधीन रहा । अंग्रेजों के शासन काल में भारतीय जनमानस पर तरह तरह के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक अत्याचार किए जा रहे थे।  इन अत्याचारों के विरुद्ध जो लोग आवाज उठाते, उनको किसी न किसी तरह सत्ता के बल पर दबा दिया जाता । अंग्रेजी अत्याचार से देश का हर वर्ग- किसान, मजदूर, जवान , रियासतदार  सब परेशान  थे, इन्ही अत्यचारों  से निजात पाने के लिए लोगों ने आजादी के लिए लम्बे समय तक संघर्ष किया।   लोगों के संघर्ष और तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कुर्बानी के बाद 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया, लेकिन अस्तित्व में आने से पहले ही राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण दो भागों में विभाजित हो गया ।


     स्वतंत्रता मिलते ही पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर जबरदस्ती कब्ज़ा जमाने की कोशिश शुरू कर दी ।  22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान की सरकार और सेना ने कबायलियों को ट्रेनिंग और हथियार देकर कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए भेज दिया।  इन कबायलियों के वेष में पाकिस्तान की नियमित सेना भी थी। कथित कबायलियों ने मुज़फ्फराबाद से होकर उरी और बारामुला पर अगले चार दिन में कब्जा कर लिया। उन्होंने कश्मीर की जनता पर कहर ढाना शुरू कर दिया, हजारों लोगों को मार डाला और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया, संपत्तियों को लूटा और घरों को जला दिया। कथित कबायली  लूट खसोट मचाते हुए तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे। 

अब तक जम्मू और कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी । वहां के महाराजा हरि सिंह भारत और पाकिस्तान के साथ विलय करने या स्वतंत्र राज्य बने रहने में ऊहापोह की स्थिति में थे। कश्मीर पर हुए इस आक्रमण का पुरजोर ज़बाब दे पाना उनके सामर्थ्य से बाहर था।  इस संकट की घड़ी में उन्होंने भारत से सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा, लेकिन उस समय की सरकार ने सहायता देने में अपनी असमर्थता जतायी। अंततः 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय करने के लिए सहमति प्रदान कर दी। भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय होते ही रक्षा की जिम्मेदारी भारत के कंधों पर आ गयी। कश्मीर को बचाने के लिए 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर पहुंचनी शुरू हो गई। 


     27 अक्टूबर 1947 की  सुबह श्रीनगर एयरपोर्ट पर भारतीय सेना की जो पहली रेजिमेंट पहुंची, वह थी 1 सिख रेजीमेंट ।  यह रेजीमेंट गुड़गांव  में शरणार्थियों की सुरक्षा में तैनात थी। जब उसे अगले दिन कश्मीर जाने का आदेश मिला तो उस समय इस यूनिट के  कमांडिंग अफसर थे लेफ्टिनेंट कर्नल  रंजीत राय। उन्होंने रात में ही पूरी रेजिमेंट को मोर्चे पर जाने के लिए तैयार किया और अगले दिन डकोटा विमानों के जरिए यह यूनिट  श्रीनगर के लिए  रवाना हो गयी।


     लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय ने वहां पहुंचते ही  श्रीनगर हवाई अड्डे को अपने कब्जे में ले लिया और श्रीनगर हवाई अड्डे के चारों तरफ अपने जवानों को तैनात किया, जिससे कि आने वाली यूनिटों को सुरक्षित उतारा जा सके। इसके पश्चात उन्होंने श्रीनगर से बारामुला की तरफ बढ़ना शुरू किया जहां कबायली मौजूद थे।  कबायली लड़ाकों की संख्या भारतीय सेना से काफी अधिक थी, लेकिन लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय के नेतृत्व में सिख रेजीमेंट ने बहुत बहादुरी से उनका मुकाबला किया। अपनी वीरता, साहस और कर्तव्यपरायणता के बल पर कबयालियोँ को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। 28 अक्टूबर को  पट्टन में कबायलियों से लड़ते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय वीरगति को प्राप्त हो गये। उस समय तक भारतीय सेना मजबूत संरचना में आ गयी थी जिसके कारण कबायलियों को उल्टे पांव पाकिस्तान की ओर भागना पड़ा। लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय को उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान और  प्रथम "महावीर चक्र" से  सम्मानित किया गया। यह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहला सैन्य अभियान था। सन् 1947 के बाद से 27 अक्टूबर को प्रतिवर्ष पैदल सेना दिवस के रुप में मनाया जाने लगा।


     पैदल सेना हमारी सेना की रीढ़ की हड्डी की तरह है। पैदल सेना के बिना कोई युद्ध न तो लड़ा जा सकता है और न ही जीता जा सकता है । युद्ध के क्षेत्र में पैदल सेना ही दुश्मन देश की सेना से आमने सामने लडती हैं। सेना की बाकी अन्य दल केवल इनकी विभिन्न तरह से सहायता करते हैं । पैदल सेना की वीरता और बलिदान की गाथा से भारतीय सेना का इतिहास भरा पड़ा है । इनके शौर्य के लिए देश का प्रथम परमवीर चक्र मेजर सोमनाथ शर्मा तथा  प्रथम महावीर चक्र लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय को मरणोपरांत दिया गया । युद्ध क्षेत्र में अदम्य साहस और वीरता के प्रदर्शन के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र अब तक पैदल सेना के 19 जाबाजों को प्रदान  गया है , जबकि इनकी कुल संख्या 21 है। अगर हम पैदल सेना के संख्याबल की बात  करें तो दुनिया में सबसे ज्यादा पैदल सैनिको की संख्या और सबसे ज्यादा 29 तरह की संरचनाएं हमारे देश में हैं।


        हरी राम यादव 

        7087815074

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