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नाइट ब्लड सर्वे से ही मिलती है माइक्रो फाइलेरिया प्रसार की सटीक जानकारी: फाइलेरिया उन्मूलन के लिए जिले में शुरू होगा नाइट ब्लड सर्वे, तैयारी शुरू:

 हम भारती न्यूज़

संवाददाता मोहम्मद अशरफ जिला ब्यूरो चीफ सारण बिहार


नाइट ब्लड सर्वे से ही मिलती है माइक्रो फाइलेरिया प्रसार की सटीक जानकारी: 





फाइलेरिया उन्मूलन के लिए जिले में शुरू होगा नाइट ब्लड सर्वे, तैयारी शुरू:


जिला और प्रखंड स्तर पर अधिकारियों और कर्मियों को दिया जाएगा प्रशिक्षण:


एनबीएस रिपोर्ट के आधार पर जिले में चलाया जाएगा आईडीए राउंड:



छपरा, 21 नवंबर।

जिले में फाइलेरिया के प्रभाव को खत्म करने के लिए जल्द ही सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) अंतर्गत आईडीए (आइवरमेक्टिन, डाईइथाइल कार्बामजीन और एल्बेंडाजाल) अभियान शुरू होगा। लेकिन उससे पहले नाइट ब्लड सर्वे (एनबीएस) का आयोजन किया जाएगा। जिससे माइक्रो फाइलेरिया के प्रसार और प्रभाव की जानकारी प्राप्त की जाएगी। इसके लिए सभी प्रखंडों में सेंटिनल और रैंडम साइट बनाए जायेंगे। साथ ही, इस साइट्स से 300-300 सैंपल लिए जायेंगे। जिनकी जांच संबंधित प्रखंड के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में करायी जाएगी। जिसके बाद जांच रिपोर्ट के आधार पर ही आईडीए राउंड का संचालन शुरू किया जायेगा। हालांकि, इसके लिए अभी अधिकारियों और कर्मियों का प्रशिक्षण शेष है। लेकिन, जल्द ही बैठक कर एनबीएस का कार्य शुरू कर दिया जायेगा। ताकि, जल्द से जल्द आईडीए राउंड शुरू किया जा सके। 




शरीर के अंगों को धीरे धीरे खराब करती है फाइलेरिया: 

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि फाइलेरिया एक घातक बीमारी है। जो धीरे धीरे शरीर के अंगों को खराब करती है। यही कारण है कि इस बीमारी की जानकारी समय पर नहीं हो पाती। हालांकि सजगता से फाइलेरिया बीमारी से बचा जा सकता है। 

उन्होंने यह भी बताया कि जिले के ग्रामीण व शहरी इलाकों में फाइलेरिया (हाथीपांव) के कई मरीज मौजूद हैं। कई मरीजों में हाथीपांव के गंभीर मामले भी देखने को मिले हैं। उन्होंने बताया कि नाइट ब्लड सर्वे जिले में फाइलेरिया मरीजों को पता लगाने का महत्वपूर्ण माध्यम है। सर्वे की मदद से फाइलेरिया प्रसार दर का पता लगाया जाता है। नाइट ब्लड सर्वे अभियान की मदद से जिले में हाथीपांव समेत फाइलेरिया से बचाव को लेकर माइक्रोप्लान तैयार करने में सहायता होती है। इससे फाइलेरिया प्रभावित क्षेत्रों पर स्वास्थ्य विभाग अपना ध्यान केंद्रित कर सकेगा और प्रसार दर के अनुसार हाथीपांव से बचाव के लिए लोगों को आईडीए को सफल बनाने की दिशा में काम करेगा। 




फाइलेरिया का कोई पर्याप्त इलाज संभव नहीं: 

डॉ दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि फाइलेरिया से बचाव के लिए शुरुआती दौर में ही बीमारी की सही जानकारी जरूरी है। यह तभी संभव है जब लोगों में शुरुआती यानी लक्षण दिखने पर जांच अनिवार्य रूप से करायी जाए। इसलिए फ्रंटलाइन वर्कर्स के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है। जिनकी बदौलत लोगों का सहयोग मिला और लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकी है। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया का कोई पर्याप्त इलाज संभव नहीं है। लेकिन इसे शुरुआत में ही पहचान करते हुए रोका जा सकता है। इसके लिए संक्रमित व्यक्ति को फाइलेरिया ग्रसित अंगों को पूरी तरह स्वच्छ पानी से साफ करना चाहिए। साथ ही सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही डीईसी व अल्बेंडाजोल की दवा का नियमित सेवन करना चाहिए।

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