नही पूर्ण विश्राम, कैसे हो ट्रेन में काम
परिचालन से जुड़े कर्मचारियों के विश्राम में कटौती
नई भर्तियां न होने से लिया जा रहा ज्यादा काम
रनिंग स्टाफ को माह में दिया जा रहा अधिकतम तीन रेस्ट
गोरखपुर बीते दिनों बुढ़वल में लोको पायलट द्वारा ट्रेन छोड़ दिये जाने का मामला रेलवे बोर्ड तक चला गया। इसे नेशनल न्यूज बनाकर कई चैनलों पर टीआरपी भी बटोरी गयी, लेकिन मामला वही ढाक के तीन पात। ट्रेन परिचालन से जुड़े कर्मचारी अभी भी 12 से 14 घण्टे की ड्यूटी बजा रहे है और यात्रियों की जान को सांसत में डाला जा रहा है। रेलवे बोर्ड के एचओईआर रुल के तहत रनिंग संवर्ग के कर्मचारियों को साइन ऑन से साइन ऑफ तक केवल नौ घण्टे की ड्यूटी का ही प्राविधान है। आपातकालीन परिस्थिति या मुख्यालय की ओर नजदीक पहुँचने की स्थिति में इसे बढ़ाकर 11 घण्टे तक किया जा सकता है। लेकिन एनईआर में मामला उलट है। यहां प्रतिदिन मालगाड़ी से लेकर सवारी गाड़ियों के कर्मीदल की ड्यूटी 12 से 14 घण्टे तक हो रही है। चार्जशीट से डर की वजह से कर्मचारी नियत घण्टे से ज्यादा काम करने के लिए बाध्य है।इससे कर्मचारियों का विश्राम प्रभावित हो रहा है और उन्हें मुख्यालय में 16 की बजाय 12 घण्टे में ही ड्यूटी के लिए बुलाया जा रहा है। बाहरी स्टेशन पर भी 6 घण्टे रेस्ट के बाद ही ट्रेन संचालन करवाया जा रहा है। कंट्रोल से लगातार दबाव बनाए जाने के नाते कर्मचारी अवसाद में है और इससे यात्रियों के सुरक्षित यात्रा पर संकट के बादल छाए रह रहे है। रेलवे बोर्ड के आदेशानुसार माह में कम से कम 22 घण्टे का पांच या 30 घण्टे का चार विश्राम क्रू को दिया जाना है लेकिन पूर्वोत्तर रेलवे में दो या तीन ही विश्राम देकर ट्रेन संचालन करवाया जा रहा है। कभी-कभी दस दिन पर भी दिए जाने वाले विश्राम को क्रू की कमी बताकर कैंसिल कर दिया जा रहा है। लाइन पर क्रू को अधिक समय तक रखने पर उसका असर मुख्यालय में रेस्ट कर रहे क्रू पर पड़ता है। क्रू न रहने की दशा में उसे कम विश्राम ही मिल पाता है। नई भर्ती न होने से कमोबेश इनके रेस्ट में कटौती की जा रही है जिससे संरक्षा और सुरक्षा दोनों प्रभावित हो रही है।
