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सेना के शौर्य का प्रतीक ऑपरेशन विजय (कारगिल)

 सेना के शौर्य का प्रतीक ऑपरेशन विजय (कारगिल)



ऑपरेशन विजय (कारगिल) वही लड़ाई थी जिसमें पाकिस्तानी सेना ने द्रास, कारगिल, बटालिक की गगनचुम्बी  पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी और मुंह की खाई थी  तथा  भारतीय सेना के कोप से बचने के लिए विदेशों तक दौड़ लगायी थी ।   03 मई 1999 को बटालिक सेक्टर की पहाड़ियों के ऊपर  वहां के स्थानीय चरवाहे ताशी नामग्याल ने कुछ लोगों को देखा । उन्हें उन पहाड़ियों के ऊपर कुछ गड़बड़ लगी और उन्होंने वहां से वापस आकर  इसकी सूचना भारतीय सेना की 3 पंजाब रेजिमेंट को दी। इस सूचना की पुष्टि के लिए 3 पंजाब रेजिमेंट के कुछ जवान ताशी नामग्याल के साथ बतायी हुई जगह पर गये। उन्होंने टेलीस्कोप से छानबीन की और देखा  कि पहाड़ियों पर कुछ लोग घूमते हुए दिखायी पड़ रहे हैं। सैनिकों ने वापस जाकर इस घटना की खबर अपने उच्च अधिकारियों को दी। इस खबर को सुनकर सेना हरकत में आ गयी। लगभग दो बजे एक हेलीकाप्टर से उन पहाड़ियों पर नजर दौड़ाई गयी, तब जाकर पता चला कि बहुत सारे पाकिस्तानी सैनिकों ने पहाड़ि़यों पर कब्जा जमा लिया है। 


      धोखेबाज पाकिस्तानी सैनिक कारगिल स्थित द्रास, मश्कोह, बटालिक आदि अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना ठिकाना बनाकर पूरी सामरिक तैयारी के साथ आक्रमण के उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। इसी क्रम में 05 मई को स्थिति का जायजा लेने के लिए एक पेट्रोलिंग पार्टी भेजी गयी। जिसे पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ लिया और उनमें से 05 सैनिकों की निर्मम हत्या कर दी । 3 पंजाब ने क्षेत्र में गश्त बढ़ा दी और 7 मई 1999 तक घुसपैठ की पुष्टि हो गयी। 3 इन्फेंट्री डिवीजन के मुख्यालय ने तत्काल कारवाई शुरू कर दी। 10 मई 1999 तक बटालिक सेक्टर में और दो बटालियनों को तैनात कर दिया गया। इस क्षेत्र में अभियान की कमान संभालने के लिए 70  इन्फेंट्री ब्रिगेड का मुख्यालय बटालिक में स्थापित कर दिया गया। 09 मई को पाकिस्तानी हमले में कारगिल में स्थित आयुध भंडार नष्ट हो गया। 10 मई को पता चला कि द्रास, मश्कोह और काकसर में भी पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ की है। इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी सतर्कता बढ़ा दी गयी।  इस बात की भी पुष्टि हो गयी कि दुश्मन तुरतुक सेक्टर में नियन्त्रण रेखा और उसके दूसरी ओर भी मोर्चा संभाल चुका है। 18-31 मई के बीच चोर बाटला सेक्टर में कुछ ओर सैनिक टुकड़ियां तैनात कर दी गयीं और इस क्षेत्र में दुश्मन के घुसपैठ के प्रयासों को पूरी तरह नाकाम कर दिया गया ।


      कारगिल में जो कुछ देखने को मिल रहा था उससे पता चल गया कि वह अपने नियमित सेना का प्रयोग करके हमारी जमीन पर कब्जा करने की सोची समझी योजना का हिस्सा है । यह भी स्पष्ट था कि जिन चोटियों पर दुश्मन ने कब्जा कर लिया था उन्हें खाली कराने के लिए संसाधन और अच्छी तैयारी की आवश्यकता होगी। शुरूआाती दिनों में दुश्मन को भगाने के जो प्रयास किये गये, उनमें काफी संख्या में हमारे सैनिक हताहत हुए क्योंकि दुश्मन ऊंची पहाड़ियों पर बैठा हुआ था। जहां से हमारी हर गतिविधि दिखाई पड़ती थी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 26 मई को भारतीय वायुसेना को भी इस अभियान में शामिल कर लिया गया । भारतीय वायु सेना ने “सफेद सागर” नाम से अपना अभियान शुरू किया। शुरूआती दौर में हमारी वायुसेना को भी क्षति उठानी पड़ी लेकिन बाद में उसने अपनी रणनीति में सुधार किया। वायुसेना ने आगे के अभियान के लिए थलसेना को अत्यंत महत्वपूर्ण सहायता पहुंचाई। वायु सेना के माध्यम से दुश्मन की शक्ति और उसकी तैनाती के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त हुईं। 


      रैकी से पता चला कि बटालिक, कारगिल, द्रास और मश्कोह सेक्टरों में दुश्मन की एक एक एक ब्रिगेड तैनात थी। प्रत्येक ब्रिगेड में शुरू में पाकिस्तान की नार्दन लाइट इन्फेंट्री  की 02 बटालियनें, स्पेशल सर्विसेज ग्रुप की 02 कम्पनियां और फ्रंटियर कोर के लगभग 600-700 सैनिक थे। इसके अतिरिक्त प्रत्येक ब्रिगेड में लगभग 02 तोपखाना की यूनिटें, इंजीनियर, सिग्नल और प्रशासनिक इकाईयां शामिल थीं । आरम्भ में दुश्मन से उन क्षेत्रों को खाली कराने की योजना थी, जहां से वे राष्ट्रीय राजमार्ग 1ए पर अपना अधिकार जमाए हुए थे और उसके बाद अन्य क्षेत्रों से दुश्मन को खदेड़ने की योजना थी। राजनीतिक और कूटनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नियन्त्रण रेखा के उस पार न जाने का निर्णय लिया गया । प्राथमिकता के आधार पर सबसे पहले द्रास सेक्टर,  मश्कोह घाटी,  बटालिक सेक्टर और फिर काकसर सेक्टर को सुरक्षित करने की योजना बनाई गयी।


      8 माऊंटेन डिवीजन को कारगिल, द्रास और मश्कोह सेक्टरों से पाकिस्तानियों को भगाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। उसके नियन्त्रण में तीन माऊंटेन ब्रिगेड थी। 3 इन्फेंट्री डिवीजन बटालिक और तुरतुक के क्षेत्रों के अभियान की जिम्मेदारी सम्भाले हुए थी। एक माऊंटेन ब्रिगेड को बटालिक सेक्टर के अभियान की कमान संभालने  के लिए पहले ही रवाना कर दिया गया था।  द्रास - मश्कोह सेक्टर में सबसे पहले तोलोलिंग पर कब्जा करने की योजना थी । द्रास में 18 ग्रिनेडियर्स तोलोलिंग पर कब्जा करने के लिए तीन प्रयास पहले ही कर चुकी थी। 02 जून को 18 ग्रिनेडियर्स ने तोलोलिंग पर कब्जा करने के लिए अपना चौथा प्रयास किया। भारी प्रतिरोध का सामना करते हुए वह 10 जून तक ऐसे स्थान पर पहुंच गयी जो पाकिस्तानी पोजीशन से लगभग 30 मीटर नीचे था।


      2 राजपूताना राइफल्स ने 12 जून को तोलोलिंग पर कब्जा करने के लिए उस स्थान को एक मजबूत आधार के रूप में प्रयोग किया। 12 जून को रात 11 बजे उसने हमला शुरू किया और घमासान लड़ाई के बाद प्वाइंट 4590 पर कब्जा कर लिया।  उसके बाद 18 ग्रिनेडियर्स ने 12 राजपूतना राइफल्स के साथ आगे बढकर प्वाइंट 4590 से 03 किमी आगे पोजीशन पर कब्जा कर लिया। बाद में प्वाइंट 5140 पर हमला करने के लिए इसी प्वाइंट 4590 का प्रयोग किया गया। प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने के लिए 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स ने दो बार प्रयास किये लेकिन उसे ज्यादा सफलता नही मिली थी। 19 जून को 18 गढवाल राइफल्स, 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स और 1 नागा ने एक साथ मिलकर हमला किया । अंततोगत्वा 20 जून को रात 3:35 बजे तक पोजीशन पर कब्जा कर लिया गया। 29 जून को भारतीय सेना ने टाइगर हिल के पास की दो पोस्ट 5060 व 5100 पर फिर से तिरंगा लहराया। यह पोस्ट हमारी सेना के नजरिए से महत्वपूर्ण थी इसीलिए इसे जल्दी कब्जा किया गया। 


      02 जुलाई के दिन भारतीय सेना के जवानों ने कारगिल को तीन तरफ से घेर लिया। दोनों देशों की तरफ से खूब गोलीबारी हुई। अंततः टाइगर हिल पर हमारी सेना ने तिरंगा लहराया। हमारी सेना ने धीरे धीरे सभी पोस्टों पर कब्जा जमा लिया। 26 जुलाई को आधिकारिक तौर पर कारगिल युद्ध को समाप्त घोषित कर दिया गया । अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस युद्ध में हमारे देश के कुल 527 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और 1363 घायल हुए जबकि पाकिस्तान के 1200 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे । इस युद्ध में अदम्य साहस और वीरता के लिए देश के बहादुर सैनिकों को 04 परमवीर चक्र ,10 महावीर चक्र और 70 वीर चक्र प्रदान किए गए हैं। इस युद्ध में उत्तर प्रदेश के  96 जवान वीरगति को प्राप्त हुए और उन्हें उनकी वीरता के लिए  02 परमवीर चक्र तथा  03 वीर चक्र प्रदान  किया गया  । इस युद्ध में 17 यूनिटों को उनकी बहादुरी के लिए चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ यूनिट साइटेशन प्रदान किया गया । 


      इस युद्ध में भारतीय तोपखाना की तोपों ने पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ दी थी । बोफोर्स , 130 एम एम  , 105 एम एम  की तोपों ने हमारी पैदल सेना को बहुत ही श्रेष्ठ और अचूक कवरिंग फायर प्रदान किया था ।  इनकी  कवरिंग फायर के बिना पाकिस्तानी सेना को गगनचुम्बी चोटियों  से खदेड़ना मुश्किल था । इस युद्ध में सेना वायु रक्षा कोर की 130 वायु रक्षा रेजिमेंट और 401 हल्की वायु रक्षा रेजिमेंट ने पूरे युद्ध क्षेत्र को अभेद्य हवाई सुरक्षा प्रदान की थी । इन यूनिटों  की सतर्कता  के कारण पाकिस्तान हवाई हमलों की हिम्मत नहीं जुटा पाया क्योंकि वह 1971 के युद्ध में अपने युद्धक विमानों और फाइटर पायलट का हश्र देख चुका था ।  1971 के युद्ध में सेना वायु रक्षा कोर (तब तोपखाना) के तोपचियों ने पाकिस्तानी युद्धक विमानों के परखच्चे उड़ा दिए थे ।


    कारगिल की दुर्गम चोटियों पर लड़ा गया यह युद्ध हमारे सैनिको की वीरता और बलिदान की पराकाष्ठ को दर्शाता है लेकिन यह युद्ध तत्कालीन सरकार और खुफिया तंत्र की सबसे बड़ी विफलता की ओर भी इंगित करता है । हमारे खुफिया तंत्र को सीमा पर दुश्मन सेना की इतनी बड़ी तैनाती की भनक भी नहीं लगी ।  कारगिल विजय दिवस आते ही वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवारों के दुख पुनः हरे हो जाते हैं । वीरगति के समय हमारे देश के माननीयों  ने सैनिकों के परिजनों से स्मारक बनवाने, सडकों , चौराहों , पुलों, सरकारी इमारतों आदि का नामकरण करने, परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने जैसे वादे किए गए थे , कई मामलों में वह वादे आज भी पूरे नहीं किए गए  ।     


     सरकार और जनप्रतिनिधियों से वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिजनों का कहना है कि इस तरह के वादे करके पूरा ना करना वीरगति प्राप्त सैनिकों की वीरता और बलिदान का अपमान  है । या तो इस तरह के वादे ना किए जाएं या पूरे किए जाएं ।   कई  परिवारों ने वादाखिलाफी से परेशान होकर अपने वीर सपूत की स्वयं प्रतिमा बनवाकर अपनी जमीन में स्मारक का निर्माण करवाया  है । सरकार और जनप्रतिनिधियों से अनुरोध है  कि देश के वीर सपूतों के नाम पर कम से कम उन सरकारी स्कूलों का नामकरण कर दें जिनमे उन्होंने शिक्षा ग्रहण की हो , उनकी ग्रामसभा में स्थित पंचायत भवनों , ग्राम सचिवालयों , प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, ग्राम सभा को जाने वाली सडको पर शौर्य द्वार बनवाकर उस सड़क का नामकरण उनके नाम पर कर दें ।  इस तरह के कदम से उस वीर योद्धा का परिवार स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेगा, जिसने देश की रक्षा में अपना लाल खोया है ।  इससे उस गांव और आसपास के गांवों के नवयुवकों में प्रेरणा का संचार होगा और देश की रक्षा के लिए उनके कदम आगे बढ़ेंगे । 


     इस तरह के कार्यों में सैनिकों के कल्याण के लिए बनाये गए कार्यलयों जैसे  स्टेशन हेडक्वार्टर, राज्य सैनिक बोर्ड और जिला सैनिक कल्याण कार्यलयों  की भी भूमिका महत्वपूर्ण है ।  वह इस  जिम्मेदारी से हाथ  पीछे नहीं खीच सकते क्योंकि वीरगति प्राप्त सैनिको , वीरता पदक विजेताओं और वीर नारियों का  पूरा लेखा जोखा रखना और उसको अपडेट रखना उनकी जिम्मेदारी होती  है ।   यह सब तभी संभव है जब हमें उन वीरों का त्याग और बलिदान याद हो, उनके परिजनो की पीड़ा हमें आँखों से दिखाई और कानो से सुनाई देती हो  । केवल दिवसों पर वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिजनो या वीरता पदक विजेताओं  को बुलाकर सम्मानित कर देने भर से हमारी जिम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती है । उन वीरों का सही सम्मान तब होगा जब उनका नाम किसी  पटल पर चमकता हुआ जनमानस को दिखाई दे । 



     - हरी राम यादव 

       सूबेदार मेजर (आनरेरी)

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