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वीरगति दिवस पर विशेष डोगराई के युद्ध के महावीर

 वीरगति दिवस पर विशेष



डोगराई के युद्ध के महावीर


हिंदी की एक कहावत है - पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं, यह कहावत 1965 के युद्ध के महावीर मेजर आसाराम त्यागी पर एकदम फिट बैठती है। वह बचपन से ही बहुत चुस्त  दुरुस्त, तेजतर्रार और  फुर्तीले थे, उनको देखकर लोग उनके पिताजी से  कहते थे कि - त्यागी देखना तुम्हारा यह बेटा बड़ा होकर तुम्हारा व तुम्हारे परिवार का नाम एक दिन पूरे देश में रोशन करेगा। उस समय कौन जानता था कि एक दिन सच में अपनी वीरता और पराक्रम के बल  पर मेजर आसाराम त्यागी देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपना और अपने परिवार का नाम अमर कर देंगे।


     1965 के भारत पाकिस्तान के  युध्द में  3 जाट बटालियन लेफ्टिनेंट कर्नल डेसमंड की कमान में पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तानी के डोगराई गांव के पास तैनात थी, मेजर आसाराम त्यागी अपनी यूनिट की  एक अग्रिम टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। 21–22 सितम्बर 1965 की रात को उन्हें पाकिस्तान के डोगराई गांव में दुश्मन की स्थिति पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया। उस समय की परिस्थितियों के अनुसार और सामरिक दृष्टि से यह चुनौती बहुत बड़ी व महत्वपूर्ण थी। यहां 3 जाट बटालियन के सामने पाकिस्तानी सेना की 16 पंजाब रेजिमेंट और 3 बलूच रेजिमेंट थी  जिसमें लगभग 1000 से अधिक सैनिक शामिल थे और इनके साथ टैंक स्क्वाड्रन भी थे, जबकि 3 जाट में लगभग 550 सैनिक ही थे। इस मोर्चे पर संख्या बल और तैयारी के हिसाब से पाकिस्तानी सेना बहुत अच्छी पोजीशन में थी। जिस जगह पर कब्जा करना था वह पिल बाक्सों से घिरी हुई थी  तथा उसकी सुरक्षा के लिए रिक्वायललेस तोपें भी लगी हुई थीं ।  


    मेजर आसाराम त्यागी ने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया और अपने सैनिकों के साथ निडरता के साथ अपने लक्ष्य की ओर आगे बढे। 3 जाट बटालियन ने डोगराई पर रात में हमला शुरू किया। हमला अप्रत्याशित था। इस अचानक हमले ने पाकिस्तानी सेना को आश्चर्यचकित कर दिया। दोनों ओर से भयंकर युद्ध शुरू हो गया। शुरू में बंदूकें और हथगोलों के साथ, फिर संगीनों के साथ और अंत में हाथों से। 


दोनों ओर से हो रहे भयंकर युद्ध में अब तक मेजर त्यागी के कंधे में 02 गोलियां लग चुकी थीं। खून काफी तेजी से बह रहा था। अपने घाव की परवाह किए बिना वह आगे बढ़ते रहे। उन्होंने ग्रेनेड की मदत से पाकिस्तानी टैंकों के कई गनरों को मार गिराया। इनके दल ने दो टैंकों को पकड़ लिया। इसी बीच दुश्मन की और 03 गोलियां उनके शरीर को पार कर गयीं। अब तक वह बुरी तरह घायल हो चुके थे। खून तेजी से बह रहा था,  वे बार बार मूर्छित हो रहे थे किन्तु अपनी प्लाटून का लगातार नेतृत्व करते रहे। उन्हें चिकित्सा के लिए युद्ध क्षेत्र से सैनिक अस्पताल भेजा गया, जहां वे वीरगति  को प्राप्त हो गए। उस समय मेजर त्यागी की शादी हुए केवल एक महीना ही हुआ था। मेजर त्यागी को अपनी सुरक्षा से ज्यादा अपने मिशन और अपने जवानों की चिंता थी , सेना की आन, बान और शान के लिए उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। डोगराई की यह लडाई लगभग 27 घंटे लगातार चली थी।  डोगराई के इस युद्ध में पाकिस्तान की सेना को बहुत भारी क्षति उठानी पड़ी थी।


     21 सितम्बर 1965 को उनके द्वारा प्रदर्शित साहस, वीरता और नेतृत्व कौशल के लिए उन्हें मरणोपरांत युद्ध काल के दूसरे सबसे बड़े सम्मान  महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। 


     मेजर आसाराम त्यागी का जन्म 02 जनवरी 1939 को उत्तर प्रदेश के जनपद गाजियाबाद की मोदी नगर तहसील के गांव फतेहपुर में  श्रीमती श्रीमती बसंती देवी और श्री सागुवा सिंह त्यागी के यहाँ हुआ। उन्होंने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा समीप के गांव सोंदा से पूरी की , स्नातक की शिक्षा मोदी डिग्री कॉलेज मोदी नगर और इंग्लिश मे पोस्ट ग्रेजुएशन मेरठ कॉलेज, मेरठ से पूरी की । वे बचपन से ही पढाई , खेल , कूद में अव्वल थे।  उन्होंने इंडियन मिलिट्री अकादमी से पास आउट होने के बाद 17 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना की जाट रेजिमेंट में में कमीशन लिया और 3 जाट रेजिमेंट में पदस्थ हुए ।


  मेजर आसा राम त्यागी की वीरता और बलिदान के सम्मान  में मोदीनगर और आस पास के क्षेत्रों मे उनकी याद मे काफी स्कूल और कॉलेज खोले गए हैं। उनकी याद में  स्मृति सेवा ट्रस्ट भी चलाये जा रहे है , जो कि हर वर्ष उनके जन्मदिन  पर उनको याद करते है और लोग बच्चों और युवाओं को  उनकी वीरता की कहानिया सुनाते हैं ।  मोदीनगर , ग़ज़ियाबाद,  दिल्ली , मेरठ और  मुजफ्फरनगर में  उनकी प्रतिमा लगाई गई है। मोदीनगर से फ़तेहपुर को जाने वाली सड़क,  एक अस्पताल, एक प्राथमिक विद्यालय और बच्चों के पार्क का नामकरण उनके नाम पर किया गया है । लखनऊ में एक हाउसिंग परियोजना का नाम मेजर आसा राम त्यागी के नाम पर “त्यागी विहार” रखा गया ।


       - हरी राम यादव 

         7087815074


(यह लेख सैन्य तथ्यों और मेजर आशाराम त्यागी के परिजनों से की गयी बातचीत  पर आधारित है।)

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