Type Here to Get Search Results !

https://www.facebook.com/humbharti.newslive

वीरगति दिवस पर विशेष हवलदार वीरेन्द्र सिंह, शौर्य चक्र (मरणोपरांत)

 वीरगति दिवस पर विशेष हवलदार वीरेन्द्र सिंह, शौर्य चक्र (मरणोपरांत)



किसी खिंची हुई रेखा को मिटाना या बदली करना  आसान नहीं होता, चाहे वह रेखा जमीन पर हो या कागज पर हो । यह मनुष्य का कोरा भ्रम है कि वह इसे छल या बल से मिटा देगा। ऐसी रेखाएं अमिट होती हैं क्योंकि वह जमीन और कागज के अलावा लोगों के दिलों और दिमाग भी खिंचीं होती है। पिछले 78 सालों से ऐसी ही एक रेखा (सीमा रेखा) को बदलने का प्रयास हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान  कर रहा है लेकिन भारतीय सेना के शौर्य और देश की आवाम के संकल्प के आगे वह कभी अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाया है। अपनी इसी सीमा रेखा की रक्षा में हमारी सेना के असंख्य वीरों ने अपना बलिदान दिया है, जम्मू कश्मीर की धरती का कण कण हमारे बहादुर सैनिकों के खून से लथपथ है। इस धरती की रक्षा में जनपद एटा के एक ऐसे बहादुर योद्धा ने अपना बलिदान दिया जिनकी शौर्य गाथा लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है।


सन्  2003 में हवलदार वीरेंद्र सिंह 21 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे।  15 अक्टूबर 2003 को उत्तरी सेक्टर के एक इलाके में आतंकवादियों के विरुद्ध एक खोजी अभियान चलाया जा रहा था। हवलदार वीरेन्द्र सिंह इसी खोजी गश्ती दल का हिस्सा थे। शाम को लगभग 1910 बजे  नागरिकों के वेष में दो आतंकवादियों ने खोजी गश्ती दल पर अचानक फायरिंग करना शुरू कर दिया । दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गयी। हवलदार वीरेन्द्र सिंह की टीम ने मोर्चा संभाल लिया। दोनों ओर से हो रही भीषण गोलीबारी में  हवलदार वीरेंद्र सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके दल के सैनिकों ने उन्हें उपचार के लिए वहां से पीछे भेजने की व्यवस्था किया लेकिन हवलदार वीरेन्द्र सिंह ने  वहां से जाने से इनकार कर दिया और अंधेरे में गश्ती दल का नेतृत्व करना जारी रखा। अपनी  सुरक्षा की परवाह किए बिना, वह जिधर से फायरिंग हो रही थी उस दिशा में दौड़ पड़े और अकेले ही दो आतंकवादियों को मार गिराया। हवलदार वीरेंद्र सिंह के इस अप्रतिम साहस और तात्कालिक निर्णय के कारण गश्ती दल के अन्य सदस्यों की जान बच गई। ऑपरेशन के परिणामस्वरूप तीन ए के 47 राइफल, एक डिस्पोजेबल रॉकेट लॉन्चर, तीन ग्रेनेड, एक अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर, एक रेडियो सेट और अन्य यौध्दिक सामान आतंकवादियों के पास से बरामद हुआ। गंभीर रूप से घायल होने और तेजी से होते रक्तस्राव के कारण हवलदार वीरेन्द्र सिंह वीरगति को प्राप्त हो गये।


हवलदार वीरेन्द्र सिंह का जन्म 10 मई 1966 को जनपद एटा के गांव पूथ यादवन में श्रीमती सरस्वती देवी और श्री बचन सिंह के यहां हुआ था। इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने गांव के पास के स्कूल से पूरी की और 30 अगस्त 1986 को भारतीय सेना की गार्ड्स रेजिमेण्ट में भर्ती हो गये। प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात इनकी तैनाती 9 गार्ड्स रेजिमेंट में हुई। बाद में इनकी अस्थायी तैनाती 21 राष्ट्रीय राइफल्स में हुई।


हवलदार वीरेन्द्र सिंह के परिवार में इनकी दो बेटियां सोनम यादव और खुश्बू यादव हैं। हवलदार वीरेन्द्र सिंह के माता पिता की मृत्यु हो चुकी है। कोरोना काल में इनकी वीरांगना श्रीमती किरन देवी की भी मृत्यु हो चुकी है। देश की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले हवलदार वीरेन्द्र सिंह की वीरता और बलिदान की  गाथा धुंधली पड़ती जा रही है। इनके नाम पर स्थानीय प्रशासन या सैन्य प्रशासन द्वारा जिले में कहीं एक ईंट तक नहीं लगायी गयी है। इनके गांव तथा आसपास के लोग इस वीर योद्धा की वीरता और बलिदान को भूलते जा रहे हैं। इनकी बेटी का कहना है कि मेरे पिताजी के नाम पर एक शौर्य द्वार का निर्माण करा कर उस पर उनके वीरता और बलिदान की कहानी लिखी जानी चाहिए तथा हमारे गांव आने वाली सड़क का नामकरण हवलदार वीरेन्द्र सिंह मार्ग किया जाना चाहिए।


    - हरी राम यादव 

    सूबेदार मेजर (आनरेरी)

    7087815874

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies