जिम्मेदारों ने खामोशी से एक अस्पताल को हमेशा के लिए कर दिया खामोश
बंद हो गया कालरा अस्पताल के रूप में प्रसिद्ध संक्रामक रोग चिकित्सालय
सीएमओ ने नही तैनात किया कोई डॉक्टर जबकि नगर निगम के छः कर्मचारी अभी भी हैं तैनात
हम भारती न्यूज से गोरखपुर मण्डल व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
गोरखपुर कागजों में भले ही उसकी चंद सांसें बची हों लेकिन हकीकत ये है कि उसका गला घोंट दिया गया है। हम बात कर रहे हैं गोरखपुर जिले के सबसे पुराने अस्पतालों में से एक संक्रामक रोग चिकित्सालय की। 1937 में अस्तित्व में आया ये अस्पताल कोल्ड डायरिया, डायरिया या कालरा के रोगियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। इस अस्पताल के रख रखाव से लेकर कर्मचारियों और दवाओं की सारी व्यवस्था नगर निगम द्वारा की जाती थी सिर्फ डॉक्टर की तैनाती सीएमओ द्वारा होती थी।
बात करें तो कागजों में कहीं भी इस अड़पताल को बंद करने का आदेश किसी अधिकारी द्वारा नही दिया गया और यही वजह है कि आज भी यहां एक फार्मासिस्ट के अलावा वार्ड बॉय, दाई, स्पीपर और गार्ड को मिलाकर कुल 6 कर्मचारी तैनात हैं।
कोविड काल में यहां अंतिम डॉक्टर के रूप में डॉ0 एकबाल अहमद अंसारी ने अपनी सेवाएं दी थी। वह सिर्फ दो माह यहां रहे इसके बाद उनका स्थानांतरण भदोही हो गया और फिर कभी इस अस्पताल में किसी डॉक्टर की तैनाती नही की गई।
आंकड़ों की बात करें तो 2017 में 1733 मरीज, 2018 में 1573 मरीज़, 2019 में 2170 मरीज़ और 2020 में जब कोरोना काल शुरू हुआ था तब 716 मरीजों का इलाज यहां किया गया था।
इस सम्बंध इन नगर आयुक्त का पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन उनसे बात नही हो सकी।
वहीं अस्पताल के बंद हो जाने के सवाल पर सीएमओ आशुतोष पाण्डेय का कहना है कि सामने ही जिला अस्पताल की इमरजेंसी है, 25 अस्पताल चलने का कोई मतलब नही है। फिलहाल हमारे पास कोई डॉक्टर नही है, जब डॉक्टर उपलब्ध हो जाएगा तब अस्पताल को चला देंगें।
यहां ये बताना जरूरी है कि गर्मियों के दिन में जब मरीजों की तादाद अचानक से बढ़ जाती है तब डायरिया के मरीजों के लिए ये अस्पताल किसी वरदान की तरह हो जाता है। यहां मरीज भर्ती करने के लिए वार्ड बने हैं । अस्पताल में फर्श पर टाइल्स लगी है और बेहद साफ सुथरा नज़र आता है लेकिन अब तस्वीर बदल गई है पहले जहां वार्डों में मरीजों की भर्ती होती थी अब वहां चुना मैलाथान और अन्य सफाई से जुड़ी चीजो को रखने वाला स्टोर बन गया है।
बहरहाल एक तरफ सरकार जहां नए अस्पताल को खोलने की क़वायद कर रही है तो वहीं सरकार के मुखिया के अपने शहर में बेहद खामोशी के साथ एक अस्पताल को हमेशा के लिए खमोश कर दिया गया।