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कांग्रेस की नाकामियों पर भाजपा की साजिश का ठीकरा ?

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 कांग्रेस की नाकामियों पर भाजपा की साजिश का ठीकरा ?



हम भारती न्यूज से उत्तर प्रदेश चीफ व्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की ख़ास खबर


नई दिल्ली“”भीलों ने बेंच दिया जंगल राजा को पता ही नहीं” यह कहावत आज के दौर में कांग्रेस पर बिल्कुल फिट बैठ रही है, खासकर मौजूदा वक्त में जब लोक सभा चुनाव हो रहे हैं और लोगों में कांग्रेस एक संभावना की दृष्टि से देखी जा रही है। इस लोक सभा चुनाव में कांग्रेस सबसे कम 340 सीटों पर लड़ रही है, उसमें से भी यदि उम्मीदवार ही अपना पर्चा खारिज करा दे या फिर पर्चा ही वापस ले ले तो इसे क्या कहेंगे? गुजरात जहां संभावना थी कि भाजपा के इस गढ़ में कांग्रेस भाजपा को टक्कर देने जा रही है, वहां की सूरत संसदीय सीट से कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी का पर्चा खारिज हो जाना बड़ी बात थी, बाद में पता चला कि वह तो भाजपा से मिलकर ही यह षणयंत्र रच बैठे थे।


कांग्रेस ने अपने इस उम्मीदवार को छ साल के लिए पार्टी से निकालने की सजा दी है। सूरत संसदीय सीट गुजरात का व्यापारी बाहुल्य सीट है यहां जीत हार की बात बाद की थी लेकिन यहां से कांग्रेस का लड़ना बहुत खास था। लड़ाई से पहले ही कांग्रेस यहां पटखनी खा बैठी। कांग्रेस उम्मीदवार के इस हरकत का मैसेज पूरे गुजरात में बहुत खराब गया। लोगों में यह चर्चा चल पड़ी कि यही कांग्रेस की जमीनी हकीकत है। इस बाबत प्रयागराज के सीनियर जर्नलिस्ट प्रदीप भटनागर की टिप्पणी गौर करने लायक है कि प्रत्याशियों के चयन के मामले में यह आलाकमान की नाकामी है जो जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ है।


सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार के पर्चा खारिज होने की चर्चा थमी भी नहीं थी कि मध्य प्रदेश के इंदौर में तो गजब हो गया। यहां कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांत बम ने तो कांग्रेस पर बम ही फोड़ दिया। अक्षय कांत बम ने इंदौर सीट से रहस्यमय तरीके से अपना पर्चा ही वापस ले लिया। इतना ही नहीं पर्चा वापस लेने के आधे घंटे पहले तक वे क्षेत्र में प्रचार करते हुए देखे गए थे। फिर अचानक पर्चा वापस लिया और कैलाश विजय वर्गीय के साथ उनके वाहन में सवार हो लिए। कांग्रेस के इस बम का कहना है कि अब वे राष्ट्र निर्माण में लग गए हैं।


बता दें कि इंदौर से कांग्रेस प्रत्याशी के 17 साल पुराने आपराधिक मामले को लेकर नामांकन दाखिल करने में ही व्यवधान की कोशिश की गई थी। बाद में उसमें कत्ल की धारा बढ़वा कर उनका पर्चा खारिज कराने की कोशिश हुई। जब इन षणयंत्रों से कामयाबी नहीं मिली तो अंततः उनका पर्चा ही वापस करवा दिया गया। इस आपरेशन के पीछे भाजपा नेता कैलाश विजय वर्गीय का हाथ माना जा रहा है। कांग्रेस या समूचा विपक्ष इसे लोकतंत्र की हत्या कहे या संविधान का मजाक, उसकी जो भद्द पिटनी थी वह पिट गई। विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को मैदान से हटाने की शुरुआत मध्य प्रदेश के खजुराहो सीट से हुई जहां इंडिया गठबंधन की उम्मीदवार मीरा यादव का पर्चा खारिज हुआ था। वे सपा से चुनाव मैदान में थीं। इंडिया गठबंधन के एक साथ तीन-तीन उम्मीदवारों के साथ ऐसा हो जाने से इंडिया गठबंधन के समक्ष अपने उम्मीदवारों की रखवाली की भी जिम्मेदारी बढ़ गई है।


ये तो थी उम्मीदवारों की बात


इसके पहले भी कांग्रेस से उसके ढेर सारे नेता दूसरे दलों द्वारा चुरा लिए गए, उससे भी पार्टी बेफिक्र थी। चाहे वह महाराष्ट्र के मिलिंद देवड़ा हों, अशोक चव्हाण हो या अन्य कई और। लोकसभा चुनाव के पहले तो कांग्रेस से विदा लेने वाले नेताओं की फेहरिस्त लंबी है। इनमें तो एक दर्जन से अधिक ऐसे कांग्रेसी हैं जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और ऊंचे ओहदे तक पर रहे हैं।


हाल ही नवीन जिंदल का अपनी विधायक मां सहित भाजपा में चला जाना कम हैरत करने वाली बात नहीं थी। एक से एक नेताओं के पार्टी छोड़ते जाने के बावजूद पार्टी कोई सबक नहीं ले रही है। उदाहरण के लिए दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अरविंद सिंह लवली का नाम लिया जा सकता है। ये जनाब शीला दीक्षित सरकार में शिक्षा मंत्री रहे हैं। वे इससे पहले भी दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं। वे कुछ माह पहले भाजपा में शामिल हुए थे। वहां से मोह भंग हुआ तो फिर कांग्रेस में आ गए।


कांग्रेस कितनी महान पार्टी है कि उसने फिर इन्हें दिल्ली प्रदेश की कमान सौंप दी। और अब अरविंद सिंह लवली तथा कथित “कष्ट” के बहाने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर पार्टी की ऐसी तैसी करने के काम में लग गए हैं। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, बिहार और बंगाल की कई सीटों पर कांग्रेस का यही हाल होने वाला है। यदि ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर 2024 के चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह से भारत मुक्त हो जायेगी ।

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